लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियों को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं और युवा कृषि उद्यमियों को सहायता की जरूरत  

महिलाओं और युवा कृषि-उद्यमियों को अभी भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उन्हें न्यायसंगत और लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियों की दिशा में आगे बढ़ने से रोकती हैं। इन चुनौतियों में फाइनेंस तक पहुंच की कमी, सीमित भूमि स्वामित्व, अनौपचारिक और अवैतनिक कार्य और उनकी जरूरतों के बारे में आवाज उठाने के कम अवसर शामिल हैं। आईसीएआर-एनएएससी पूसा में 9-12 अक्टूबर तक आयोजित चार दिवसीय अंतरराष्ट्रीय जेंडर सम्मेलन में व्यापारिक दिग्गजों, मॉडल किसानों और वैज्ञानिकों के एक पैनल द्वारा इन मामलों को सामने लाया गया।

लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियों को बढ़ावा देने के लिए महिलाओं और युवा कृषि उद्यमियों को सहायता की जरूरत  

महिलाओं और युवा कृषि-उद्यमियों को अभी भी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है जो उन्हें न्यायसंगत और लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियों की दिशा में आगे बढ़ने से रोकती हैं। इन चुनौतियों में फाइनेंस तक पहुंच की कमी, सीमित भूमि स्वामित्व, अनौपचारिक और अवैतनिक कार्य और उनकी जरूरतों के बारे में आवाज उठाने के कम अवसर शामिल हैं। आईसीएआर-एनएएससी पूसा में 9-12 अक्टूबर तक आयोजित चार दिवसीय अंतरराष्ट्रीय जेंडर सम्मेलन में व्यापारिक दिग्गजों, मॉडल किसानों और वैज्ञानिकों के एक पैनल द्वारा इन मामलों को सामने लाया गया।

“अनुसंधान से प्रभाव तक : न्यायसंगत और लचीली कृषि-खाद्य प्रणालियां” विषय पर आयोजित सम्मेलन की मेजबानी सीजीआईएआर जेंडर इम्पैक्ट प्लेटफॉर्म और भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) द्वारा की गई है। इसका उद्घाटन सोमवार को राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु ने किया था। इस चार दिवसीय सम्मेलन के दूसरे दिन 18 सत्र आयोजित हुए जिसमें बाजरा की कटाई के बाद प्रसंस्करण में महिला किसानों के कठिन परिश्रम को कम करने के उपाय, महिला रेहड़ी-पटरी वालों और फेरीवालों के बीच लिंग अंतर का आकलन और आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में किसानों के बीच बीज की पसंद के लिंग आधारित चालक जैसे विषयों पर 80 से अधिक वैज्ञानिक पोस्टरों की प्रस्तुतियां शामिल थीं।

इस सम्मेलन के महत्व को दोहराते हुए सीजीआईएआर जेंडर इम्पैक्ट प्लेटफॉर्म के निदेशक डॉ. निकोलिन डी हान ने कहा कि विश्व स्तर पर कृषि-खाद्य प्रणालियों में लैंगिक असमानता बहुत ही महत्वपूर्ण चुनौती बनी हुई है। कुल मिलाकर, भोजन में महिलाएं अक्सर पुरुषों की तुलना में कम सुरक्षित होती हैं और वे बाढ़ और सूखे जैसे बाहरी झटकों से भी अधिक प्रभावित होती हैं। हम नीति-निर्माताओं और निवेशकों को सर्वोत्तम समाधानों की दिशा में मार्गदर्शन करने के लिए अनुसंधान, साक्ष्य और व्यावहारिक समझ का संयोजन कर रहे हैं जो हमें लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण पर वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता प्रदान सकता है।

सम्मेलन के दूसरे दिन शहद उत्पादक कंपनी बी फ्रेश प्रोडक्ट्स की संस्थापक और निदेशक अनुषा जुकुरी, एम लेंस रिसर्च प्राइवेट लिमिटेड (एक संगठन जो एकल-उपयोग दूध मिलावट परीक्षण कार्ड का उत्पादन करता है) के संस्थापक और प्रबंध निदेशक ध्रुव तोमर, लखनऊ फार्मर्स मार्केट (स्टार्ट-अप और उपभोक्ताओं को जोड़ने वाला एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म) की सीईओ ज्योत्सना कौर हबीबुल्लाह, और पूसा कृषि (एक एजी-टेक इनक्यूबेटर और आईसीएआर में वरिष्ठ स्केल वैज्ञानिक) की सीईओ डॉ. आकृति शर्मा ने पैनल चर्चा में भाग लिया। 'अनुसंधान को आधार बनाना : क्षेत्र से अनुभव' शीर्षक वाले सत्र की अध्यक्षता तमिलनाडु कृषि विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. वी. गीतालक्ष्मी ने की।

ज्योत्सना कौर हबीबुल्लाह ने कहा कि जब खेतों में जाते हैं तो अक्सर महिलाएं ही खेतों में काम करती हुई दिखाई देती हैं, लेकिन उन महिलाओं के पास न तो अपनी जमीन होती है और न ही उन्हें अपनी मेहनत का पैसा मिलता है। अधिकांश समय उनके कार्यों पर ध्यान ही नहीं दिया जाता और न ही उन्हें कोई भुगतान किया जाता है। अनुषा जुकुरी ने चार साल में अपना व्यवसाय पांच से बढ़ाकर 1,500 मधुमक्खी के छत्ते तक कर लिया। उन्होंने फाइनेंस तक पहुंच की कमी पर अफसोस जताते हुए कहा कि जब उन्होंने पहली बार इस काम की शुरुआत की थी तो उन्हें बैंक कर्ज देने के इच्छुक नहीं थे। अब जब उन्होंने व्यवसाय में सफलता हासिल कर ली है, तो वे कर्ज देने की इच्छा जता रहे हैं।  

सत्र का समापन ऑस्ट्रेलियन सेंटर फॉर इंटरनेशनल एग्रीकल्चरल रिसर्च (एसीआईएआर) में आउटरीच और क्षमता निर्माण के महाप्रबंधक एलेनोर डीन द्वारा किया गया। डीन ने कहा कि गरीबी और असमानता असमान शक्ति संबंधों पर आधारित है और इनका लिंग के मामले में इतना महत्व नहीं हैं। यही एक कारण है कि एसीआईएआर ने न केवल लैंगिक समानता बल्कि सामाजिक समावेशन को भी शामिल करने के लिए अपने काम का विस्तार किया है।

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