सरकार जितनी सख्ती करेगी, किसान आंदोलन उतना मजबूत होगा: जयंत चौधरी

केंद्र सरकार द्वारा लाये गये तीन कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा आंदोलन को तीसरे महीने में प्रवेश कर गया है। इस आंदोलन में एक बड़ा मोड़ तब आया, जब उत्तर प्रदेश दिल्ली के गाजीपुर बार्डर पर चल रहा आंदोलन अपनी अंतिम सांसें गिन रहा था और 28 जनवरी को इसके समाप्त होने की स्थिति बन गई थी। लेकिन सरकार की सख्ती के बाद भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत की भावनात्मक अपील से आंदोलन में एक नई जान आ गई। इसी का असर है कि किसान आंदोलन ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें बहुत मजबूत कर ली हैं।

सरकार जितनी सख्ती करेगी, किसान आंदोलन उतना मजबूत होगा: जयंत चौधरी

किसान आंदोलन में राष्ट्रीय लोक दल ने सक्रिय भागीदारी शुरू कर दी है। लोक दल पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसान पंचायत कर रहा है। इसी कड़ी में सर्वाधिक किसान भागीदारी वाली पंचायत पांच फरवरी को शामली जिले के भैंसवाल गांव में हुई, जिसमें करीब 20 हजार किसान शामिल हुए। इस पंचायत को राष्ट्रीय लोक दल उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने संबोधित किया। पंचायत के तुरंत बाद किसान आंदोलन को लेकर जयंत चौधरी ने रुरल वॉयस के एडिटर-इन-चीफ हरवीर सिंह के साथ यह बातचीत की

सवाल - आपको क्या लगता है कि आंदोलन किस दिशा में जा रहा है? क्या सरकार तीन कृषि कानूनों को वापस लेगी?

सरकार का माइंडसेट तो नहीं लगता है कि वह इन कानूनों को वापस लेगी। 

सवाल - आंदोलन कर रहे किसानों के साथ ही कुछ दूसरे लोगों पर भी कई तरह के केस दर्ज किये जा रहे हैं? उनका क्या असर होगा? यह सरकार की सोची समझी रणनीति है या सरकार अति आत्मविश्वास की शिकार है?

मेरा मानना है कि सरकार जो कदम उठा रही है वह देश की छवि पर प्रतिकूल असर डालेंगे। दुनिया भर में लोग जो लोग इंडिया स्टोरी से प्रभावित हैं, उनको इससे सकारात्मक संदेश नहीं मिल रहा है। न ही निवेशकों में इस तरह के कदमों से सही संदेश जा रहा है। भारत की छवि एक साफ्ट पॉवर की रही है। कल्चरल पावर की रही है। दुनिया भर में लोग इस वजह से हमें प्यार करते हैं और हमारे लोगों को चाहते हैं। लेकिन सरकार के कदमों से निगेटिव मैसेज जा रहा है।

सरकार इसके लिए किसानों को दोषी ठहरा रही है। लेकिन यह सही नहीं है, क्योंकि बदनामी आप खुद कर रहे हैं। इससे इंडिया की सॉफ्ट पावर की छवि को नुकसान हो रहा है। असल में भाजपा और उसके नेता एक इलेक्शन विनिंग मशीन बन चुके हैं। वह किसी की नहीं सुनते हैं और सरकार को किसी की परवाह नहीं है। इससे निवेशकों पर भी प्रतिकूल असर हो रहा है। सरकार विरोध और आंदोलनों को दबाने के लिए चीन और रूस की तरह लोगों पर सख्ती बरत रही है, जो लोकतांत्रिक मूल्यों के हित में नहीं है।

सवाल - लोकतांत्रिक व्यवस्था में सरकार के फैसले लोगों की मांग पर वापिस भी होते रहे हैं? सांसद रहने के नाते आपका अनुभव क्या कहता है?  

देखिये सरकार ने ऐसा पहले भी किया है। मैं इसका एक मजबूत उदाहरण देना चाहूंगा। यूपीए सरकार 2009 में गन्ने के एफआरपी पर इसी तरह कानून लेकर आई थी। शरद पवार जी कृषि मंत्री थे। हमने इसका विरोध किया। हमने जंतर-मंतर पर प्रदर्शन किया, जिसमें करीब 25 से 30 हजार गन्ना किसान शामिल हुए थे। इस प्रदर्शन में हमने बीजेपी को भी बुलाया था और आडवाणी जी उस मंच पर आये थे। यह हाल के बिलों की कृषि बिलों की तरह का ही मामला था। सरकार ने अध्यादेश जारी कर संसद में बिल पेश कर दिया था। उसमें भी राज्यों के गन्ना मूल्य तय करने के अधिकार को समाप्त कर दिया गया था। सरकार ने बिल में संशोधन किया और बाद में इसे वापिस ले लिया था। सिर्फ तीन घंटे की इस रैली से सरकार को अहसास हो गया था और बिल वापिस हो गया था क्योंकि समझ आ गया कि लोग इसके खिलाफ हैं। ऐसे में आप बताइये कि वह सरकार मजबूत थी या यह सरकार मजबूत है।

सवाल- आपको लगता है कि यूपीए की सरकार मजबूत थी?

क्योंकि वह अपनी जवाबदेही समझती थी और उसने मुद्दे को समझकर तुरंत उस पर कदम उठाया। डेमोक्रेसी में वही सरकार मजबूत होती है जो लोगों की सुनें। यह इग्नोरेंट सरकार है जिसे किसी की परवाह नहीं है। यह सरकार कूकून में रह रही है जो केवल खुद में सिमट गई है। लेकिन लोकतंत्र में इस तरह रवैया ठीक नहीं होता है। आप देखिये, अजय हुड्डा ( इस इंटरव्यू के दौरान साथ में बैठे गायक अजय हुड्डा का एक गाना किसानों में बहुत लोकप्रिय हो रहा है) जैसे लोगों को लोग क्यों सुनते हैं? क्योंकि यह लोगों के मन की बात कर रहे हैं। इसने लोगों के साथ भावनात्मक रिश्ता जोड़ लिया है। सरकार को देखना चाहिए कि लोग क्या चाहते हैं। सरकार को भी समझना चाहिए कि अंडरकरंट क्या है।

सवाल- यह विवाद कैसे खत्म होगा? किसान आंदोलन को 70 दिनों से ज्यादा हो चुके हैं।

सरकार लोगों को थका देना चाहती है। वह सख्ती कर रही है और सोचती है कि लोग वापस चले जाएंगे। सरकार इन लोगों की भावनाओं को नहीं समझ रही है। जो लोग आंदोलन स्थलों पर बैठे हैं, सरकार उनके और जिन क्षेत्रों से वह आते हैं, उनके स्वभाव को नहीं समझती है। आप जितना इन लोगों पर सख्ती करेंगे, जितने केस लगाएंगे वह उतना ही नाराज होंगे। वह वापस नहीं आएंगे बल्कि और ज्यादा संख्या में पहुंचेंगे।

सवाल - 26 जनवरी को आंदोलन में एक नया मोड़ आया। उस दिन जो हिंसक घटनाएं हुई, उससे किसान आंदोलन की बदनामी हुई। इसके चलते 28 जनवरी को लग रहा था कि आंदोलन खत्म हो जाएगा। लेकिन 28 जनवरी को चार बजे से 10 बजे के बीच छह घंटों में गाजीपुर बॉर्डर पर जो कुछ हुआ, उससे सब कुछ बदल गया। राष्ट्रीय लोक दल अध्यक्ष अजित सिंह ने राकेश टिकैत को फोन किया और आपने उसे ट्विट किया। क्या इससे साफ नहीं होता कि आंदोलन को सीधे राजनीतिक समर्थन शुरू हो गया?

किसानों का मुद्दा  जायज है और ग्रासरुट से जुड़ा मुद्दा है। अगर लोग उम्मीद खो देंगे तो आंदोलन नहीं चलेगा। उम्मीद में ही यह टिकेगा। राजनीतिक दल होने के नाते हमारी जवाबदेही है। राजनीतिक दल के नाते हम यह बताना चाहता हैं कि दूसरा रास्ता भी है। वह आज नहीं सुन रहे हैं। उन्हें लोगों के सामाजिक और राजनीतिक समर्थन को देखना चाहिए। राजनीतिक कदम लोगों की उम्मीदों को बरकरार रखने और नाराजगी को सुलझाने का तरीका है। पहले भी मैं आंदोलन स्थल पर गया था और लंगर में हिस्सा लिया। पहले हम उसमें शामिल नहीं हो सकते थे क्योंकि आंदोलन की भावना यही थी। लेकिन अब स्थिति बदल गई है। यह समाधान ढ़ूंढ़ने की राजनीतिक पहल है।

सवाल- इसका मतलब है कि अब राजनीतिक दल इस आंदोलन को सीधा सपोर्ट कर रहे हैं?

हां, मैं मुजफ्फरनगर पंचायत में गया था। उसके बाद हमने किसान पंचायत बुलाना शुरू कर दिया। हमने बड़ौत में पंचायत की, मथुरा में की। हमने आज भैंसवाल की इस किसान पंचायत का आयोजन किया। हम कह रहे हैं कि अगर आप आना चाहतें हैं, खाप प्रमुख आना चाहते हैं तो आपके लिए मंच है। हम इनका आयोजन कर रहे हैं और यह हमारा राजनीतिक अभियान है। हम लगातार 18 फरवरी तक पश्चिमी उत्तर प्रदेश और राजस्थान में करीब एक दर्जन किसान पंचायत कर रहे हैं। बाकी दलों के लिए शायद यह व्यवहारिक न हो। एक वजह भी है कि हरियाणा में किसान आंदोलन में कांग्रेस और अकाली दल दोनों के समर्थक आये हुए हैं। वहां कुछ अलग स्थिति है जो यूपी में नहीं है। आंदोलन करने वालों को समझना चाहिए कि राजनीतिक दलों को नहीं बुलाकर वह गलती कर रहे हैं। उन्हें यह नहीं सोचना चाहिए कि राजनेता उनके आंदोलन पर नियंत्रण कर लेंगे। लोकतंत्र में समस्या का हल राजनीतिक प्रक्रिया में ही होता है।

सवाल- लेकिन क्या आरएलडी सरकार विरोधी लहर के सहारे अपनी राजनीतिक जमीन मजबूत कर रही है?

हमने एक पूरा शेड्यूल बनाया है अपनी बैठकों का। भाजपा को समझना चाहिये कि इसका उसे नुकसान होगा। जाहिर है हमें इसका फायदा होगा। हम आंदोलन को मजबूत करने में मदद कर रहे हैं।

सवाल- राकेश टिकैत कहते हैं कि राजनीतिक दलों को आंदोलन का फायदा वोट बटोरने के लिए नहीं उठाना चाहिए?

वह अपनी जगह ठीक हैं। उनकी तरफ से कहना ठीक है। इसलिए हम अपने प्लेटफार्म पर किसान पंचायतें कर रहे हैं।

सवाल-अगले साल यूपी में चुनाव हैं। आप सपा के साथ मिलकर जाट- मुस्लिम वोट बैंक का फायदा उठायेंगे? कहा जा रहा है कि जाटों का आंदोलन है।

यह लीडरशिप की बात है। हर आंदोलन की लीडरशिप होती है यहां वह लीड कर रहे हैं। लेकिन ऐसा नहीं कहा जा सकता है कि यह केवल जाटों का आंदोलन है। यह किसानों का आंदोलन है। इस बेल्ट में गन्ना मुख्य फसल है इसलिए मैंने आज गन्ना मूल्य और बकाया का मुद्दा उठाया। सरकार ने दाम नहीं तय किया गया। बकाया भुगतान 14 हजार करोड़ रुपये पर पहुंच गया है। यह सभी किसानों का मुद्दा है। आंदोलन में कोई एक जाति नहीं, बल्कि सभी किसान शामिल हैं।

 

 

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