मॉडर्न साइलोज, एग्रीटेक और कंसल्टेंसी पर है हमारा फोकसः संजय गुप्ता, एमडी एवं सीईओ, एनसीएमएल

नेशनल कमोडिटीज मैनेजमेंट सर्विसेज लिमिटेड (एनसीएमएल) खाद्यान्नों के भंडारण के मॉडर्न सिस्टम साइलो के जरिये अनाजों के भंडारण के साथ ही पारंपरिक भंडारण सुविधाएं प्रदान करती है। इस समय कंपनी की कुल स्थापित भंडारण क्षमता 25 लाख टन से ज्यादा है और इस क्षेत्र की सबसे बड़ी निजी कंपनी है। भंडारण के अलावा एनसीएमल फूड टेस्टिंग बिजनेस, मौसम पूर्वानुमान, पैदावार के अनुमान लगाने सहित एग्रीटेक और फसल बीमा कंपनियों को कंसल्टेंसी देने के क्षेत्र में भी काम करती है। पेश हैं एनसीएमल के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ संजय गुप्ता से रूरल वॉयस के एडिटर इन चीफ हरवीर सिंह से हुई खास बातचीत के प्रमुख अंशः

नेशनल कमोडिटीज मैनेजमेंट सर्विसेज लिमिटेड (एनसीएमएल) खाद्यान्नों के भंडारण के मॉडर्न सिस्टम साइलो के जरिये अनाजों के भंडारण के साथ ही पारंपरिक भंडारण सुविधाएं प्रदान करती है। इस समय कंपनी की कुल स्थापित भंडारण क्षमता 25 लाख टन से ज्यादा है और इस क्षेत्र की सबसे बड़ी निजी कंपनी है। भंडारण क्षेत्र में एनसीएमल सरकार की नोडल एजेंसी भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के साथ भी मिलकर काम कर रही है। भंडारण के अलावा एनसीएमल फूड टेस्टिंग बिजनेस, मौसम पूर्वानुमान, पैदावार के अनुमान लगाने सहित एग्रीटेक और फसल बीमा कंपनियों को कंसल्टेंसी देने के क्षेत्र में भी काम करती है। एनसीएमएल कमोडिटीज तक ही सीमित नहीं है बल्कि कृषि क्षेत्र और फूड चेन के जितने आयाम हैं उन सब में कंपनी का कामकाज है। पेश हैं एनसीएमल के मैनेजिंग डायरेक्टर और सीईओ संजय गुप्ता से रूरल वॉयस के एडिटर इन चीफ हरवीर सिंह से हुई खास बातचीत के प्रमुख अंशः

एनसीएमएल का मुख्य कारोबार क्या है और कंपनी किस तरह से काम करती है?

एनसीएमएल की शुरुआत 20 साल पहले 2004 में हुई थी। फसल कटाई के बाद फसलों का जो नुकसान होता है उसे कम करने के लिए हमने वैज्ञानिक तरीके से भंडारण सेवाएं प्रदान करने के मकसद से इसकी शुरुआत की थी। जैसे-जैसे समय बीतता गया और बाजार में बदलाव आते गए हम भी बिजनेस के नए-नए आयाम जोड़ते चले गए। भंडारण हमारा मुख्य कारोबार है। आज हम पारंपरिक गोदामों में भंडारण की व्यवस्था के अलावा आधुनिक भंडारण व्यवस्था साइलो के जरिये ग्राहकों को सेवाएं प्रदान कर रहे हैं। पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे चार प्रमुख राज्यों में सात जगहों पर साइलो बनाए गए हैं। साइलो में अनाज रखने का सबसे बड़ा फायदा यह है कि इसमें हैंडलिंग (लॉजिस्टिक) खर्च कम होता है और कीड़े लगने का खतरा कम रहता है। इसके अलावा हम फूड टेस्टिंग लैब के कारोबार में हैं। हमारे पास एनएबीएल से एक्रीडेटेड और एफएसएसएआई व एपीडा से प्रमाणित 9 फूड टेस्टिंग लैब्स हैं जो विभिन्न राज्यों में हैं। इन लैब्स में एंटीबायोटिक रेसिड्यूज, पेस्टिसाइड रेसिड्यूज और आयात-निर्यात किए जाने वाले कृषि एवं खाद्य उत्पादों की जांच होती है।

एनसीएमएल की शुरुआत कमोडिटी एक्सचेंज एनसीडीईएक्स की सब्सिडियरी कंपनी नेशनल कोलेटरल मैनेजमेंट सर्विसेड लिमिटेड के रूप में हुई थी। अब कंपनी का ऑनरशिप स्ट्रक्चर किस तरह का है?

एनसीडीईएक्स के कमोडिटी स्टोरेज सर्विस प्रोवाइडर के रूप में कंपनी की शुरुआत हुई थी। उसमें बहुत बड़ी हिस्सेदारी आईसीआईसीआई बैंक और राबो बैंक की थी। 2015 में फेयर फैक्स समूह ने उस हिस्सेदारी को खरीद लिया। 2019 में हमने कंपनी का नाम बदलकर नेशनल कमोडिटी मैनेजमेंट सर्विसेज लिमिटेड रखा। आज की तारीख में देशभर के अलग-अलग जगहों पर हमारे 800 वेयरहाउस हैं और बहुत सारे कारोबार हैं।

सरकार ने निजी कंपनियों के साथ मिलकर मॉडर्न साइलोज सिस्टम की शुरुआत की है। इस क्षेत्र में आपके अलावा और कई सारी कंपनियां काम रही हैं। इसके भविष्य को आप किस तरह से देखते हैं?

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के जो पारंपरिक गोदाम हैं उनकी क्षमता कम है। इस वजह से एफसीआई को खुले में अनाज रखना पड़ता है। उसमें सबसे नुकसान होता है। उसका समाधान यह था कि साइंटिफिक वेयरहाउस बने। साइलो की सबसे बड़ी सुविधा यह है कि लॉजिस्टिक कॉस्ट की बचत होती है। किसान जब मंडी में गेहूं बेच कर जाता है तो उसके बाद उसका प्रबंधन करना होता है, जैसे उसे बोरियों में भरना, उसे गोदामों में रखना और भंडारण के बाद खाद्यान्नों को कीड़ों से बचाने के लिए छिड़काव करना आदि। उसमें काफी दिक्कत होती है। साइलो में यह सब चीजें बहुत आसानी से प्रबंधित की जाती हैं। साइलो में एक निश्चित तापमान पर खाद्यान्नों को रखा जाता है जिससे कीड़ों का हमला नहीं होता है। एफसीआई का लक्ष्य है कि ज्यादातर भंडारण को हॉरिजेंटल से वर्टिकल में कन्वर्ट किया जाए। जैसे-जैसे उनकी योजना आगे बढ़ती जाएगी और नए-नए राज्य कवर होते जाएंगे हम भी उनके साथ इसके भागीदार रहेंगे। जहां भी मौका मिलेगा हम उनके लिए साइलो बनाकर उन्हें यह सेवा प्रदान करेंगे।

साइलो में अभी चावल का भंडारण नहीं होता है, जबकि देश में बड़ी मात्रा में चावल का उत्पादन होता है। बिहार के बक्सर और कैमूर में एनसीएमएल चावल के भंडारण के लिए पायलट प्रोजेक्ट के रूप में साइलो बना रही है।  उसके बारे में भी थोड़ा बताइए?

अभी तक यही मान्यता रही है कि साइलोज मक्का, बाजरा, गेहूं जैसे अनाजों के भंडारण के लिए ही अनुकूल है। चावल के लिए इसे अनुकूल नहीं माना जाता है। चावल भंडारण की दो-तीन दिक्कतें हैं। एक तो चावल में कीड़ों का हमला ज्यादा होता है। दूसरा दाना टूटने की समस्या है। नीचे वाले दाने के टूटने का खतरा ऊपर के दानों के वजन की वजह से ज्यादा रहता है। बिहार के बक्सर और कैमूर में दो नए साइलो बनाए जा रहे हैं जिसमें चावल रखा जाएगा। इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर शुरू किया जा रहा है। एक-दो साल चावल रखकर देखा जाएगा कि क्या होता है। चावल के भंडारण में हमेशा नमी का नुकसान होता है जो एक-दो फीसदी तक का होता है। अगर मान लें कि 100 लाख टन चावल का उत्पादन हुआ तो नमी की वजह से 2 लाख टन तक नुकसान होने का खतरा रहता है। हमें उम्मीद है कि चावल को साइलो में रखने से यह नुकसान कम हो जाएगा। अगर यह पायलट प्रोजेक्ट सफल रहा तो फिर साइलो को काफी बढ़ावा मिलेगा क्योंकि अभी तक जितने भी प्लान बने हैं वह गेहूं के हिसाब से बने हैं। चावल के साइलो सफल होने से भारत में इस कारोबार के लिए बहुत बड़ी संभावना पैदा होगी। खाद्यान्न भंडारण के लिए देश में ज्यादा साइलो चाहिए होंगे।

आपका जो फूड टेस्टिंग बिजनेस है उसमें कहां-कहां पर क्या-क्या काम कर रहे हैं?

आज हमारे पास देश के विभिन्न हिस्सों में 9 लैब्स हैं। हमारी सबसे बड़ी लैब गुड़गांव, मुंबई, हैदराबाद, चेन्नई और विशाखापट्टनम में हैं। इसके अलावा गुजरात के ऊंझा, कोलकाता, इंदौर और बेंगलुरु में लैब्स है। चेन्नई की लैब एफएसएसएआई के साथ मिलकर बनाई गई है। वहां पर इंपोर्ट-एक्सपोर्ट वाले सैंपल की जांच होती है और उन्हें प्रमाणित किया जाता है। सभी लैब्स में फूड टेस्टिंग नार्म्स के हिसाब से सभी टेस्ट की सुविधाएं उपलब्ध हैं। इनमें जो सबसे ज्यादा सॉफिस्टिकेटेड टेस्टिंग होती है वह एंटीबायोटिक और पेस्टिसाइड रेसिड्यूज की होती है। जैसे-जैसे लोगों में खाद्य सुरक्षा को लेकर जागरूकता बढ़ रही है यह कारोबार बढ़ता जा रहा है। सरकार भी बहुत जागरूक है कि कंपनियां अपने उत्पादों को लेकर जो दावा करती हैं वही ग्राहकों को मिले।

क्या कंपनियों में फूड टेस्टिंग कराने का ट्रेंड बढ़ रहा है? खाद्य सुरक्षा के मानकों का पालन करने को लेकर क्या कंपनियां ज्यादा गंभीर हो रही हैं? आपका क्या अनुभव है?

इसमें दो चीजें हो रही हैं। एक तो यह कि ग्राहक बहुत ज्यादा जागरूक हो रहे हैं। उनको मानक गुणवत्ता चाहिए। भारत में असंगठित क्षेत्र में जो फूड प्रोसेसिंग हुआ करती थी पिछले चार-पांच साल से वह अब संगठित क्षेत्र में तब्दील हो रहा है। जो बड़ी कंपनियां होती हैं उनको गुणवत्ता का सर्टिफिकेशन चाहिए होता है। उनके पास अपनी लैब्स भी होती हैं मगर वह चाहते हैं कि बाहर की प्रतिष्ठित एजेंसी भी उनकी लैब रिपोर्ट को सर्टिफाइड करें और बताएं कि उनका प्रोसेस ठीक है या नहीं। मेरा मानना है कि टेस्टिंग की जरूरत बढ़ती जा रही है और बढ़ती रहेगी। इससे यह बिजनेस भी बढ़ रहा है।

आपकी लैब्स की सेवाएं कौन सी बड़ी फूड कंपनियां ले रही हैं?

आप कोई भी बड़ा नाम ले लीजिए, चाहे पिज्जा-बर्गर बनाने वाली कंपनी हो या एफएमसीजी कंपनियां वह हमारे साथ किसी न किसी तरह से जुड़ी हुई हैं। यहां तक कि ई-कॉमर्स कंपनी अमेजन और निंजाकार्ट की सप्लाई चेन में जो टेस्टिंग होती है वह भी हमारे पास आती रहती है।

क्रॉप रिस्क मैनेजमेंट के तहत आपकी कंपनी आईओटी, ड्रोन या सेंसर्स के इस्तेमाल जरिये फसल बीमा कंपिनयों को सेवाएं मुहैया कराती हैं। यह कितना व्यावहारिक है? दूसरा, किसानों को जब बड़ा नुकसान होता है तो अक्सर यह सवाल उठता है कि नुकसान की तुलना में बीमा कंपनियों से उन्हें कम क्लेम मिला। आप बताइए कि यह कितना साइंटिफिक है और नुकसान के आकलन को कितना संतुलित व उचित बनाया जा सकता है? आप इसे कैसे देखते हैं?

वेदर सेंसर्स का डाटा सीधे फसल बीमा कंपनियों के पास पहुंचता है। वह एक फ्रीक्वेंसी पर जाता है। जो बीमा कंपनी हमारा डाटा लेती है उसके पास यह अधिकार होता है कि वह कभी भी उस डाटा का इस्तेमाल कर सकती हैं। उसमें छेड़छाड़ होना बहुत मुश्किल है। मगर यह बात सही है कि पहले जो इंश्योरेंस हुआ करता था उसमें यह होता था कि नुकसान ज्यादा हो गया तो सबको इंश्योरेंस मिल जाएगा। अब यह हो सकता है कि आपके खेत में नुकसान हुआ लेकिन अगर सेंसर के हिसाब से जो बारिश का जो आंकड़ा है उसके आधार पर ही क्लेम का फैसला होता है। आज की तारीख में जब भी कोई आपदा आती है तो सरकार या इंश्योरेंस कंपनी नुकसान का आकलन करवाती है। नुकसान वाले इलाके में किसानों के खेतों में जाकर सरकार या बीमा कंपनी के लोग जाकर नुकसान का आकलन करते हैं। उसी आकलन के हिसाब से बीमा कंपनियां किसानों के नुकसान की भरपाई करती हैं। सेंसर्स से जो डाटा आता है उसका वेरिफिकेशन जमीनी स्तर पर भी किया जाता है ताकि नुकसान के आकलन में कोई गलती या कमी न रह जाए। हम इंश्योरेंस कंपनियों को क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट की सेवा भी देते हैं। यह सिर्फ इंश्योरेंस के लिए ही नहीं बल्कि पैदावार के अनुमान के लिए भी जरूरी है।

क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट को तो राज्य सरकारें करवाती हैं?

उनके पास इंप्लीमेंटेशन एजेंसी होती है। हम उनके साथ मिलकर काम करते हैं। जब भी कोई क्रॉप कटिंग एक्सपेरिमेंट होता है उसकी पूरी जियो टैगिंग की जाती है, उसका पूरा वीडियो बनाया जाता है। वह हमारे सेंट्रल सर्वर पर अपलोड है। अगर 3 महीने या 6 महीने बाद भी उस पर कोई विवाद होगा तो हमारे पास विजुअल प्रूफ रहता है कि यह एक्सपेरिमेंट ऐसे किया गया था और यहां किया गया था। जियो टैगिंग है तो यह भी नहीं हो सकता है कि खेत किसी का है और ट्रायल कहीं और हो जाए।

कृषि क्षेत्र में काफी टेक्नोलॉजी आ गई है। आप लोग भी टेक्नोलॉजी का काफी इस्तेमाल कर रहे हैं। यह बताइए कि मॉडर्न टेक्नोलॉजी कंपनियों या सरकारी संस्थाओं तक ही सीमित हैं या व्यावहारिक रूप से किसान भी इन्हें अपनाने की दिशा में जा रहा है?

हमारे यहां सबसे बड़ी दिक्कत यह है कि जोत छोटी हो गई है और किसानों की संख्या करोड़ों में हैं। किसी भी कंपनी के लिए टेक्नोलॉजी को इतने लोगों तक पहुंचाना बहुत मुश्किल है। भारत सरकार ने एफपीओ (किसान उत्पादक संगठन) की जो नई स्कीम बनाई है मुझे बहुत आशा है कि एफपीओ कामयाब होंगे। इससे वर्चुअल कंसोलिडेशन हो जाएगा और लैंड होल्डिंग बड़ी हो जाएगी। किसानों का ग्रुप बन जाएगा तो उन तक पहुंचना आसान हो जाएगा। व्यक्तिगत स्तर पर किसानों तक इसे पहुंचाना बहुत बड़ी चुनौती है। एफपीओ के जरिये किसी भी कंपनी के लिए उन्हें सेवाएं देना आसान होगा और एफपीओ उन सेवाओं को खरीद सकते हैं। मुझे एफपीओ से बहुत उम्मीद है।

मौसम पूर्वानुमान में भी आप काम करते हैं। आईएमडी के अलावा कई निजी कंपनियां इस क्षेत्र में काम कर रही हैं। आपका कामकाज उनसे कैसे अलग है और मानसून को लेकर आपका क्या आकलन है?

मानसून का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल काम है। कई सारे सॉफिस्टिकेटेड मॉडल हैं जिसका इस्तेमाल किया जाता है। आप ऐतिहासिक डाटा देखेंगे तो 1970 से लेकर 2019 तक 25 अल-नीनो आए हैं। इनमें 20 बार ऐसा हुआ है कि बारिश कम हुई और 5 बार बारिश ज्यादा हुई है। यह साल भी अल-नीनो का साल है। हम तो यही उम्मीद करेंगे कि यह ज्यादा वर्षा वाला अल-नीनो हो। मानसून में थोड़ी देरी हो गई है। इस कारण अनिश्चितता बढ़ रही है। यह मानसून शायद थोड़ा कम रह सकता है। इसकी जो वास्तविक स्थिति है वह 25 जून के आसपास निकलकर आएगी कि यह अल-नीनो कम बारिश वाला है या ज्यादा बारिश वाला।  

एनसीएमएल की बिजनेस ग्रोथ कैसी है? आपकी कंपनी लिस्टेड नहीं है। क्या आप कुछ आंकड़ों की जानकारी दे सकते हैं?

कारोबारी आंकड़ों की जानकारी मैं नहीं दे पाऊंगा लेकिन आज की तारीख में हमारे पास करीब 800 गोदाम हैं जिनकी भंड़ारण क्षमता 22 लाख टन है। इसके अलावा 7 साइलोज हैं जिनकी क्षमता 3.5 लाख टन है। हमारे समूह में 1100 कर्मचारी काम करते हैं। हमारा बिजनेस ग्रोथ अच्छा है और यह कृषि उत्पादन पर निर्भर करता है क्योंकि कृषि उत्पादन और खपत के बाद का जो हिस्सा बचता है वही भंडारण में आता है। दो साल से सरप्लस थोड़ा कम है इसलिए भंडारण कम है। पिछले साल की तुलना में इस साल अच्छी ग्रोथ है। दूसरी बात यह है कि किसानों को बैंकों या प्राइवेट सेक्टर से जो कर्ज दिया जाता है वह आज की तारीख में बढ़ रहा है। कर्ज के बदले जो खाद्यान्न कोलेटरल की तरह रखा जाता है उसका प्रबंधन भी हम करते हैं। इस कारोबार में भी भारी तरक्की हो रही है।

कृषि क्षेत्र में कॉरपोरेट्स की भूमिका काफी तेजी से बढ़ रही है, खासकर एग्रीटेक और फिनटेक में। इसका भविष्य आप कैसे देख रहे हैं?

कृषि में किसान की लागत उसी दिन से शुरू हो जाती है जिस दिन वह खेत की जुताई शुरू करता है। इसका रिटर्न तब आता है जब उसकी फसल कटकर बिक जाती है। उसके बीच में एक बहुत बड़ा अंतर है। उस अंतर को कम करने के लिए क्रेडिट इन्वेस्टमेंट बहुत जरूरी है। यह बिजनेस पिछले दो सालों से काफी तेजी से बढ़ रहा है। पिछले दो सालों में कमोडिटीज की कीमत काफी अच्छी रही है। किसान भी इनपुट्स पर बहुत ज्यादा इन्वेस्ट करना चाहता है। बढ़िया बीज, बढ़िया दवाई, बढ़िया उर्वरक ले रहा है। इन पर इन्वेस्टमेंट के लिए फंडिंग चाहिए। पहले माइक्रो-फाइनेंस कंपनियां जो कर्ज बांटती थीं वह ज्यादातर खपत आधारित होता था। अब धीरे-धीरे कृषि में इन्वेस्टमेंट क्रेडिट की बात होने लगी है। इसे व्यापार में पूंजी लगाने के हिसाब से देखा जा रहा है। मेरे हिसाब से यह बहुत बड़ा मौका है। यह बिजनेस बहुत तेजी से बढ़ेगा।

कृषि में निवेश, किसानों के कल्याण और आमदनी बढ़ाने को लेकर सरकार की जो नीतियां हैं उसे आप कैसे देखते हैं?

सरकार की नीति रही है कि किसानों का नुकसान न हो। पिछले साल आपने देखा कि कुछ चीजों की कीमतें जब लगातार बढ़ने लगी तो सरकार ने कमोडिटी एक्सचेंज में बहुत सारी कमोडिटीज पर प्रतिबंध लगा दिया। कुछ चीजों के निर्यात को प्रतिबंधित कर दिया। सरकार का काम बहुत मुश्किल है। उसे किसानों और उपभोक्ताओं दोनों का ख्याल रखकर संतुलन बनाना होता है।

सरकार के अचानक फैसलों से आप जैसी कंपनियां सीधे प्रभावित होती हैं। इस बारे में क्या कहेंगे?

हर कोई यह चाहता है कि सरकार की जो नीति है वह स्थायी हो, उसमें अचानक बदलाव न हो जब तक कि कोई आपातकालीन स्थिति न हो। अचानक निर्यात पर प्रतिबंध का फैसला हो जाता है या स्टॉक लिमिट लगाने का फैसला हो जाता है या कमोडिटी एक्सचेंज पर कुछ कमोडिटीज को बैन कर दिया जाता है। मगर सरकार की मुश्किलें हमारी तुलना में बहुत ज्यादा हैं। उसकी दुविधा ज्यादा है। हालांकि कारोबारी नजरिये से देखें तो पॉलिसी फ्रेमवर्क स्थायी होना चाहिए तभी निवेशक उसमें निवेश करता है।

एनएसीएमल का भविष्य का रोडमैप क्या है?

भविष्य में हम एग्रीटेक पर ज्यादा फोकस करना चाहते हैं। नई-नई टेक्नोलॉजी आ रही है। हमारा किसानों से सीधा संबंध बहुत ज्यादा है। हम चाहते हैं कि कोई ऐसी टेक्नोलॉजी हो जिसे किसानों तक पहुंचाना हो तो हम उसे तेजी से पहुंचा सकते हैं। हमारा फोकस रहेगा कि कंसल्टेंसी और एग्रीटेक पर ज्यादा ध्यान दिया जाए और किसानों तक इसको बहुत जल्दी उपलब्ध कराया जाए। फसल आने से लेकर किसानों को दाम मिलने तक का जो समय है उसे कम किया जाए। दिनों से उसे घंटों में लाया जाए। एग्रीटेक का भविष्य अच्छा है और कंपनी इस पर बहुत फोकस करना चाहती है।

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