पश्चिम चंपारण के मर्चा धान को मिला जीआई टैग, बिहार के पांच कृषि उत्पादों को पहले मिल चुकी है यह पहचान

बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के मर्चा धान को जीआई टैग मिला है। इस धान का चिड़वा सुंगंध से भरपूर और स्वाद में अनूठा होता है। इससे अब यहां मर्चा धान की खेती को न सिर्फ बढ़ावा मिलेगा बल्कि चिड़वा का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर किया जा सकेगा। इसका फायदा मर्चा धान उगाने वाले किसानों को होगा और उनकी आमदनी में बढ़ोतरी होगी। मर्चा धान को वैश्विक पहचान मिलने से इसके चिड़वा निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा। यह बिहार का छठा कृषि उत्पाद है जिसे जीआई टैग मिला है।

पश्चिम चंपारण के मर्चा धान को मिला जीआई टैग, बिहार के पांच कृषि उत्पादों को पहले मिल चुकी है यह पहचान

बिहार के पश्चिम चंपारण जिले के मर्चा धान को जीआई टैग मिला है। इस धान का चिड़वा सुंगंध से भरपूर और स्वाद में अनूठा होता है। इससे अब यहां मर्चा धान की खेती को न सिर्फ बढ़ावा मिलेगा बल्कि चिड़वा का उत्पादन भी बड़े पैमाने पर किया जा सकेगा। इसका फायदा मर्चा धान उगाने वाले किसानों को होगा और उनकी आमदनी में बढ़ोतरी होगी। मर्चा धान को वैश्विक पहचान मिलने से इसके चिड़वा निर्यात को भी बढ़ावा मिलेगा। यह बिहार का छठा कृषि उत्पाद है जिसे जीआई टैग मिला है।

मर्चा धान की खेती पश्चिम चंपारण जिले के रामनगर, नरकटियागंज, मैनाटांड़, गौनाहा, लौरिया और चनपटिया के लगभग के 300 एकड़ में होती है। जिला प्रशासन के सहयोग से कृषि विभाग इस धान का रकबा बढ़ाने की कोशिश में लगा है ताकि मर्चा चिड़वा का निर्यात बढ़ाया जा सके। निर्यात बढ़ने से किसानों को उनकी उपज की अच्छी कीमत मिल सकेगी और यहां नए चिड़वा मिल खुलेंगे जिससे रोजगार का भी सृजन होगा।

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि पश्चिम चंपारण की मिट्टी इस धान के लिए बेहद उपयुक्त है। इस धान की सुगंध और स्वाद बेहतर बेहतर है। इस कारण इसकी मांग बढ़ती जा रही है। मर्चा चिड़वा को जीआई टैग दिलाने में कृषि विभाग, कृषि विज्ञान केंद्र, कृषि वैज्ञानिकों और धान उत्पादक प्रगतिशील समूह के किसानों का बड़ा योगदान रहा है। पश्चिम चंपारण जिले के आनंदी का भुजा और जर्दा आम को अब जीआई टैग दिलाने की कोशिश की जा रही है।

इसके साथ ही बिहार के छह कृषि उत्पादों को जीआई टैग मिल चुका है। इससे पहले मुजफ्फरपुर की लीची, भागलपुर के कतरनी चावल और जर्दालु आम, मिथिला क्षेत्र के मखाना और नवादा के मगही पान को जीआई टैग मिल चुका है। अब पश्चिम चंपारण के मर्चा चिड़वा को जीआई टैग मिला है।

क्या होता है जीआई टैग और क्या है इसका फायदा

जीआई का फुल फॉर्म है जियोग्रैफिकल इंडिकेशन यानी भौगोलिक संकेत। जीआई टैग वह प्रतीक है, जो किसी उत्पाद को उसके उत्पादन वाले क्षेत्र से जोड़ने के लिए दिया जाता है। आसान शब्दों में कहें तो यह टैग बताता है कि वह उत्पाद किस जगह पैदा होता है या उसे कहां बनाया जाता है। यह उन उत्पादों को दिया जाता है जो किसी विशेष क्षेत्र में पैदा होते हैं या बनाए जाते हैं। केंद्र सरकार यह टैग देती है जिसकी शुरुआत 2003 में हुई थी। सबसे पहले पश्चिम बंगाल की दार्जलिंग चाय को 2004 में जीआई टैग मिला था।

जीआई टैग से उस उत्पाद को कानूनी संरक्षण मिलता है। उस नाम से दूसरा उत्पाद नहीं लाया जा सकता है।  साथ ही यह किसी उत्पाद की अच्छी गुणवत्ता का पैमाना भी होता है। इससे देश के साथ-साथ विदेशों में भी उस उत्पाद के लिए बाजार आसानी से मिल जाता है। सीधे शब्दों में कहें तो जीआई टैग के जरिये उस उत्पाद के लिए रोजगार से लेकर आमदनी बढ़ाने तक के दरवाजे खुल जाते हैं।

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