सस्ते आटे का कब खत्म होगा इंतजार, गेहूं के थोक भाव घटे मगर नहीं घट रहे खुदरा दाम

1 फरवरी से अब तक एफसीआई तीन ई-नीलामी में 18.13 लाख टन गेहूं की बिक्री कर चुका है। इसका असर थोक भाव पर तो पड़ा है लेकिन खुदरा कीमतें अभी तक नहीं घटी हैं। आटा के अलावा बिस्किट, ब्रेड जैसे गेहूं उत्पाद के दाम जस के तस बने हुए हैं। खाद्य उत्पादों की महंगाई से उपभोक्ता परेशान हैं। उन्हें इस बात का इंतजार है कि आखिर कब तक उन्हें सस्ता आटा मिलने लगेगा? क्या उन्हें सस्ते आटे के लिए नई फसल का इंतजार करना होगा? क्या महंगाई घटाने के सरकार के इस कदम का फायदा बड़े व्यापारी उठा रहे हैं और उपभोक्ताओं को कोई राहत नहीं मिलेगी? ऐसे कई सारे सवाल हैं जो अब उठने लगे हैं।

सस्ते आटे का कब खत्म होगा इंतजार, गेहूं के थोक भाव घटे मगर नहीं घट रहे खुदरा दाम
प्रतीकात्मक फोटो

महंगाई को नियंत्रण में रखने और गेहूं व आटा की कीमतों को घटाने के लिए सरकार ने केंद्रीय पूल से 50 लाख टन गेहूं बेचने का फैसला किया है। इसमें से 45 लाख टन गेहूं की बिक्री भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) की ओर से आटा मिलों, गेहूं उत्पाद निर्माताओं और बड़े व्यापारियों जैसे थोक खरीदारों को की जा रही है। 1 फरवरी से अब तक एफसीआई तीन ई-नीलामी में 18.13 लाख टन गेहूं की बिक्री कर चुका है। इसका असर थोक भाव पर तो पड़ा है लेकिन खुदरा कीमतें अभी तक नहीं घटी हैं। आटा के अलावा बिस्किट, ब्रेड जैसे गेहूं उत्पाद के दाम जस के तस बने हुए हैं। खाद्य उत्पादों की महंगाई से उपभोक्ता परेशान हैं। उन्हें इस बात का इंतजार है कि आखिर कब तक उन्हें सस्ता आटा मिलने लगेगा? क्या उन्हें सस्ते आटे के लिए नई फसल का इंतजार करना होगा? क्या महंगाई घटाने के सरकार के इस कदम का फायदा बड़े व्यापारी उठा रहे हैं और उपभोक्ताओं को कोई राहत नहीं मिलेगी? ऐसे कई सारे सवाल हैं जो अब उठने लगे हैं।

मध्य भारत कंसोर्टियम ऑफ एफपीओ के सीईओ योगेश द्विवेदी कहते हैं, “सरकार ने जिस मंशा से केंद्रीय पूल से गेहूं बेचने का कदम उठाया है वह अभी तक पूरा होता नहीं दिख रहा है। 25 जनवरी को जब सरकार ने खुले बाजार में 30 लाख टन गेहूं जारी करने का फैसला किया था तो थोक बाजार में इसका असर तुरंत दिखने लगा और भाव घटने लगे। 1 फरवरी से जब गेहूं की नीलामी शुरू हुई तो थोक भाव 3,200-3,400 रुपये प्रति क्विंटल से 600-700 रुपये तक गिर गए। अब तो नीलामी शुरू हुए तीन हफ्ते से ज्यादा हो चुके हैं, खुदरा भाव पर भी इसका असर दिखना चाहिए था मगर ऐसा नहीं हो रहा है। यह साफ नजर आ रहा है कि आटा मिल और गेहूं उत्पाद निर्माता इसका फायदा आम उपभोक्ताओं तक नहीं पहुंचा रहे हैं। सरकार से सस्ता गेहूं खरीदकर वो अपनी जेबें भर रहे हैं। बाजार में भी यही सेंटीमेंट है कि आगे गेहूं के दाम जरूर बढ़ेंगे। इसलिए भी खुदरा कीमतें नहीं घट रही हैं। बढ़ती गर्मी को देखते हुए जिस तरह से गेहूं की पैदावार घटने की आशंका अभी से जताई जाने लगी है उसने भी सेंटीमेंट पर असर डाला है।” खुद सरकार के आंकड़े भी इसी बात की गवाही दे रहे हैं कि थोक खरीदार सस्ते गेहूं का फायदा उपभोक्ताओं को नहीं दे रहे हैं और मुनाफाखोरी कर रहे हैं। खाद्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, बुधवार को ज्यादातर शहरों में गेहूं की औसत खुदरा कीमत 33.09 रुपये प्रति किलो रही और आटा का औसत खुदरा भाव 38.75 रुपये प्रति किलो पर बना हुआ है। जबकि गेहूं की थोक कीमत घटकर 3,200-3,400 रुपये प्रति क्विंटल से घटकर 2,500 रुपये प्रति क्विंटल से नीचे आ गई है।

40-42 रुपये किलो मिल रहा आटा

रूरल वॉयस ने जब खुदरा कीमतों की पड़ताल की तो पाया कि खुदरा बाजार में पैकेट वाले ब्रांडेड आटा का भाव 40-42 रुपये प्रति किलो तक है। इनमें आशीर्वाद, अन्नपूर्णा, पतंजलि और पिल्सबरी जैसे बड़े ब्रांड शामिल हैं। इन ब्रांडों का आटा ब्लिंकिट, अमेजन, मिल्क बास्केट जैसे ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर भी इसी भाव में मिल रहा हैं। नोएडा के सेक्टर 51 स्थित दुकानदार राजेश कुमार ने बताया कि बड़े ब्रांडों के आटा का भाव पहले के स्तर पर ही बना हुआ है। राजधानी ब्रांड का आटा जरूर 10 रुपये प्रति पैकेट (10 किलो) सस्ता हुआ है। नोएडा के ही एक और दुकानदार ने बताया कि आशीर्वाद आटा का 5 किलो वाला पैक पहले से 10 रुपया महंगा हो गया है। एक हफ्ते पहले तक इसका एमआरपी 235 रुपये था, अब 245 रुपये एमआरपी वाला पैकेट आ रहा है।

दाम घटाने के दूसरे उपाय भी करे सरकार

आटा की खुदरा कीमतों में ज्यादा कमी नहीं आने को देखते हुए हालांकि सरकार ने चेतावनी दी है कि महंगाई को नियंत्रित करने के लिए वह थोक खरीदारों के लिए स्टॉक लिमिट का भी फैसला कर सकती है। लेकिन इसका कितना असर खुदरा कीमतों पर पड़ेगा यह कहना मुश्किल है। योगेश द्विवेदी भी कहते हैं कि स्टॉक लिमिट का ज्यादा असर भाव पर नहीं पड़ेगा। उनका कहना है कि सरकार को गेहूं वितरण का कोई दूसरा मैकेनिज्म अपनाना चाहिए। जिस तरह से एनसीसीएफ, नाफेड, केंद्रीय भंडार, राज्यों के को-ऑपरेटिव और एजेंसियों जैसे सरकारी संस्थानों को आदेश दिया गया है कि वे 27.50 रुपये प्रति किलो से ज्यादा के भाव पर आटा नहीं बेचेंगे, उसी तरह के उपाय थोक खरीदारों के लिए भी किया जाना चाहिए। उनका सुझाव है कि ई-नीलामी में गेहूं खरीदने वाले थोक खरीदारों के लिए टेंडर में ही इस बात का प्रावधान किया जा सकता है कि जिस दर पर वे गेहूं खरीद रहे हैं उसी के समानुपातिक आधार पर वे आटा या गेहूं उत्पादों का खुदरा भाव रखेंगे। इसके अलावा सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) के जरिये भी बिना कार्डधारकों को निश्चित कीमत पर गेहूं की बिक्री की जा सकती है। सरकार चाहे तो ऐसा किया जा सकता है और इसका असर पूरी तरह तो नहीं लेकिन कुछ हद तक जरूर पड़ेगा।

वैसे भी अभी एफसीआई की ई-नीलामी और केंद्रीय व राज्यों की एजेंसियों के जरिये कुल 23 लाख टन गेहूं की ही बिक्री हुई है। ई-नीलामी के जरिये अभी 27 लाख टन गेहूं की बिक्री की जानी बाकी है। अगर इस तरह के एहतियाती कदम सरकार ने नहीं उठाए तो आगे भी आम उपभोक्ताओं को सस्ते आटे के लिए तरसना पड़ेगा।

इस बीच, एफसीआई के चेयरमैन अशोक के मीणा ने कहा है कि इस रबी सीजन में गेहूं की फसल अच्छी है। पिछले साल के मुकाबले गेहूं बुवाई का रकबा बढ़ा है। फसल वर्ष 2023-24 में एफसीआई 300-400 लाख टन गेहूं खरीदेगा।   

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