किसानों की मांगें पूरी नहीं हुई तो होगा एक और बड़ा आंदोलन, महापंचायत ने सरकार को चेताया

संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आयोजित इस महापंचायत में किसान नेताओं ने कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानूनी गारंटी, कर्जमाफी और पेंशन देने जैसी उनकी मांगों को अगर पूरा नहीं किया गया तो एक महीने बाद फिर से किसानों का बड़ा आंदोलन चलाया जाएगा। महापंचायत में देशभर के 32 किसान संगठनों ने हिस्सा लिया।

किसानों की मांगें पूरी नहीं हुई तो होगा एक और बड़ा आंदोलन, महापंचायत ने सरकार को चेताया
नई दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित किसान महापंचायत को संबोधित करते राकेश टिकैत।

दिसंबर 2021 में तीन विवादास्पद कृषि कानून वापस लेने के समय केंद्र सरकार द्वारा किसानों से किए गए  वादों को याद दिलाने के लिए हजारों किसानों ने सोमवार को नई दिल्ली के रामलीला मैदान में विशाल 'महापंचायत' की। संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले आयोजित इस महापंचायत में किसान नेताओं ने कहा कि  न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) पर कानूनी गारंटी, कर्जमाफी और पेंशन देने जैसी उनकी मांगों को अगर पूरा नहीं किया गया तो एक महीने बाद फिर से किसानों का बड़ा आंदोलन चलाया जाएगा। महापंचायत में देशभर के 32 किसान संगठनों ने हिस्सा लिया।

आंदोलनकारी किसानों की अन्य मांगों में किसानों के खिलाफ दर्ज मामलों को वापस लेना, 2020-21 में हुए किसान आंदोलन के दौरान मारे गए किसानों के परिवारों को मुआवजा एवं उन्हें शहीद का दर्जा देना और बिजली बिल वापस लेना जैसी मांगें शामिल हैं। संयुक्त किसान मोर्चा के 15 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से कृषि भवन में मुलाकात की और उन्हें अपनी मांगों का ज्ञापन सौंपा।

कृषि मंत्री से मुलाकात के बाद किसान नेता दर्शन पाल ने कहा, "कई अनसुलझे मुद्दे हैं जिसके लिए एक और 'आंदोलन' करना होगा जो पिछले आंदोलन से भी बड़ा आंदोलन होगा। बिना आंदोलन के सरकार एमएसपी की कानूनी गांरटी नहीं देने वाली है। हम 30 अप्रैल को दिल्ली में एक और बैठक बुलाएंगे। मैं देशभर के सभी किसान संगठनों से आह्वान करता हूं कि इन मांगों के समर्थन में वे अपने-अपने राज्यों में रैलियां निकालें और पंचायत स्तर पर बैठकें आयोजित करें।" उन्होंने कहा, "हम रोज-रोज विरोध करना नहीं चाहते हैं लेकिन हम  मजबूर हैं। अगर सरकार ने हमारी मांगों पर ध्यान नहीं दिया तो हम एक और आंदोलन शुरू करेंगे जो कृषि कानूनों के विरोध में हुए आंदलन से भी बड़ा होगा।"

उन्होंने कहा कि उनकी मांगों में केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्रा टेनी की मंत्रिमंडल से बर्खास्तगी, उन्हें जेल भेजने और ओलावृष्टि एवं बेमौसम बारिश के कारण फसलों को हुई क्षति का मुआवजा भी शामिल है। दर्शन पाल ने कहा कि कृषि मंत्री नरेंद्र तोमर ने प्रतिनिधिमंडल को बताया कि किसानों को दी जाने वाली बिजली सब्सिडी को विद्युत अधिनियम से छूट दी गई है। उन्होंने कहा, "यह मांग पहले ही पूरी हो चुकी है। यह संयुक्त किसान मोर्चा के लिए एक बड़ी जीत है।" नरेंद्र तोमर ने प्रतिनिधिमंडल को बताया कि सरकार ने ओलावृष्टि और बेमौसम बारिश के कारण फसलों को हुए नुकसान के लिए मुआवजा देने के निर्देश पहले ही जारी कर दिए हैं। एमएसपी की कानूनी गारंटी के मुद्दे पर तोमर ने कहा कि किसानों के खिलाफ दर्ज मामले वापस लेने और मृत किसानों के परिवारों को मुआवजा देने को लेकर वे व्यक्तिगत रूप से हस्तक्षेप करेंगे।

जय किसान आंदोलन के राष्ट्रीय अध्यक्ष अविक साहा ने कहा कि लिखित आश्वासन के बावजूद केंद्र सरकार किसानों की मांगों को पूरा करने में विफल रही है। उन्होंने कहा, "किसानों के खिलाफ हजारों मामले लंबित हैं। तीन कृषि कानूनों के विरोध में हुए आंदोलन के दौरान 750 से अधिक किसानों की जान चली गई और उनके परिवारों को मुआवजा नहीं मिला है। और कई अन्य मांगें हैं जो पूरी नहीं हुई हैं।"

नवंबर 2021 में तीन कृषि कानूनों को निरस्त करने की घोषणा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किसानों को एमएसपी उपलब्ध कराने के उपाय सुझाने के लिए एक समिति गठित करने का वादा किया था। केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने पिछले साल जुलाई में इस संबंध में एक समिति गठित करने की घोषणा करते हुए अधिसूचना भी जारी की थी। अधिसूचना में कहा गया है कि समिति देश भर के किसानों को एमएसपी उपलब्ध कराने, प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और फसल विविधीकरण के लिए एक व्यापक रणनीति तैयार करने के उपाय सुझाएगी। केंद्र सरकार ने समिति में किसान संगठनों के सदस्यों के लिए तीन पद भी रखे थे। हालांकि किसान संगठनों ने समिति के गठन को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि इसके एजेंडे में एमएसपी पर कानून  बनाने का कोई जिक्र नहीं है।

केंद्र सरकार हर साल 22 फसलों के लिए एमएसपी और गन्ने के लिए उचित और लाभकारी मूल्य (एफआरपी) की घोषणा करती है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि किसानों को उनकी उपज का न्यूनतम मूल्य मिल सके। मगर सरकार एमएसपी पर सभी फसलों को खरीदने के लिए बाध्य नहीं है। एमएसपी पर करीब 30-40 फीसदी ही सरकारी खरीद हो पाती है। बाकी फसलों को किसानों को बाजार मूल्य पर निजी व्यापारियों और कंपनियों को बेचना पड़ता है। यही वजह है कि एमएसपी का लाभ देशभर के सभी किसानों को नहीं मिल पाता है। किसानों की मांग है कि एमएसपी पर कानून बनाकर व्यापारियों के लिए इससे कम कीमत पर फसलों की खरीद को अवैध बनाया जाए। साथ ही एमएसपी से कम कीमत पर खरीद करने वालों के लिए सजा का प्रावधान किया जाए।

जिन फसलों को सरकार किसानों से महत्वपूर्ण मात्रा में खरीदती है उनमें धान, गेहूं और कपास शामिल हैं। सरकारी खरीद कीमतों को स्थिर रखती है और एमएसपी निजी खरीदारों के लिए बेंचमार्क के रूप में कार्य करता है।

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