2032 तक दुनिया के गेहूं-चावल उत्पादन वृद्धि में सबसे अधिक योगदान भारत का होगाः ओईसीडी-एफएओ आउटलुक

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है और उत्पादन में वृद्धि सबसे ज्यादा यहीं होगी। अगले एक दशक में दुनिया में गेहूं का उत्पादन जितना बढ़ेगा, उसका एक-चौथाई भारत से होगा। इसका मुख्य कारण बेहतर किस्मों का इस्तेमाल और रकबे में वृद्धि होगी। चावल के उत्पादन में अगले एक दशक में 5.5 करोड़ टन की वृद्धि होने की संभावना है और कुल उत्पादन 2032 तक 57.7 करोड़ टन पहुंच जाएगा। इस वृद्धि में सबसे अधिक हिस्सा भारत का होगा।

2032 तक दुनिया के गेहूं-चावल उत्पादन वृद्धि में सबसे अधिक योगदान भारत का होगाः ओईसीडी-एफएओ आउटलुक

अगले एक दशक में, यानी वर्ष 2032 तक दुनिया में गेहूं और चावल के उत्पादन में जो वृद्धि होगी, उसमें सबसे अधिक योगदान भारत का होगा। ओईसीडी और एफएओ के एग्रीकल्चरल आउटलुक 2023-32 में यह अनुमान जताया गया है। इसके मुताबिक, दुनिया में गेहूं का उत्पादन 2032 तक 7.6 करोड़ टन बढ़कर 85.5 करोड़ टन हो जाने की संभावना है। भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा गेहूं उत्पादक है और उत्पादन में वृद्धि सबसे ज्यादा यहीं होगी। अगले एक दशक में दुनिया में गेहूं का उत्पादन जितना बढ़ेगा, उसका एक-चौथाई भारत से होगा। इसका मुख्य कारण बेहतर किस्मों का इस्तेमाल और रकबे में वृद्धि होगी। रूस, कनाडा, अर्जेंटीना और पाकिस्तान में भी उत्पादन में अच्छी खासी वृद्धि होने की संभावना है। वर्ष 2032 तक यूरोपियन यूनियन के सबसे बड़ा गेहूं उत्पादन बनने के आसार हैं। वह चीन को इस मामले में पीछे छोड़ देगा।

चावल के उत्पादन में अगले एक दशक में 5.5 करोड़ टन की वृद्धि होने की संभावना है और कुल उत्पादन 2032 तक 57.7 करोड़ टन पहुंच जाएगा। इस वृद्धि में सबसे अधिक हिस्सा भारत का होगा। चीन दुनिया का सबसे बड़ा चावल उत्पादक है। वहां बीते एक दशक के दौरान जिस गति से उत्पादन बढ़ा है, अगले दशक में भी उसके बरकरार रहने की संभावना है। दुनिया में मक्के का उत्पादन 2032 तक 16.5 करोड़ टन बढ़कर 1.36 अरब टन हो जाने की संभावना है। सबसे अधिक वृद्धि अमेरिका, ब्राज़ील, अर्जेंटीना और भारत में होगी। मोटे अनाज का उत्पादन 2.3 करोड़ टन बढ़कर 33 करोड़ टन हो जाने के आसार हैं। इस वृद्धि में 75% हिस्सा अफ्रीकी देशों का होगा। 

रिपोर्ट में कहा गया है कि 2032 तक दुनिया में अनाज का उत्पादन 32 करोड़ टन बढ़कर 3.1 अरब टन हो जाने की संभावना है। इस वृद्धि में ज्यादातर हिस्सा चावल और मक्के का होगा। पिछले दशक की तरह उत्पादन में ज्यादातर वृद्धि एशियाई देशों में होगी। कुल वृद्धि का 45% इस क्षेत्र से होगा। अफ्रीका में ज्यादातर वृद्धि मक्का तथा अन्य मोटे अनाज के मामलों में होगी। यह क्षेत्र पिछले दशक की तुलना में विश्व अनाज उत्पादन वृद्धि में अधिक योगदान करेगा। लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई देश मुख्य रूप से मक्के के मामले में योगदान करेंगे।

अनाज की मांग धीमी गति से बढ़ेगी

आउटलुक में कहा गया है कि अगले 10 वर्षों के दौरान दुनिया में अनाज की मांग पिछले दशक की तुलना में धीमी गति से बढ़ेगी। चारा, बायोफ्यूल और उद्योगों में अनाज की मांग की वृद्धि दर कम होने के कारण ऐसा होगा। ओईसीडी और एफएओ के एग्रीकल्चरल आउटलुक 2023-32 के अनुसार अनेक देशों में प्रति व्यक्ति खाद्य खपत ज्यादातर अनाजों के मामले में अपने शीर्ष स्तर पर पहुंच गई है। इसलिए कुल मांग में वृद्धि अधिक नहीं होगी। खाद्य पदार्थों की मांग में ज्यादातर वृद्धि प्रत्यक्ष रूप से आबादी में वृद्धि से जुड़ी है। आबादी कम तथा मध्य आय वाले देशों में बढ़ रही है। आबादी के कारण एशिया में गेहूं और चावल की खपत तथा अफ्रीका में मिलेट और मक्के की खपत बढ़ेगी। अफ्रीका में प्रति व्यक्ति चावल की खपत भी बढ़ने के आसार हैं।

अगले एक दशक में दुनिया में अनाज उत्पादन में वृद्धि ज्यादा उत्पादकता और खेती की मौजूदा जमीन पर सघन कृषि की वजह से होगी। नई और बेहतर किस्म के बीज उपलब्ध होंगे, इनपुट का इस्तेमाल ज्यादा प्रभावी तरीके से होगा और खेती के तौर-तरीकों में भी सुधार होगा। हालांकि कुछ देशों में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों, नई टेक्नोलॉजी की पहुंच ना होने तथा कृषि क्षेत्र में कम निवेश के कारण उत्पादन में वृद्धि प्रभावित होगी। इसके अलावा पर्यावरण को लेकर जागरूकता बढ़ने तथा नई पर्यावरण नीतियों से भी ग्रोथ पर असर पड़ेगा।

2032 तक अनाज ट्रेड 11% बढ़ेगा 

वर्ष 2022 में विश्व में 17% अनाज उत्पादन की ट्रेडिंग हुई। हालांकि अलग-अलग अनाज में यह अनुपात अलग है। चावल के 10% तो गेहूं के 25% उत्पादन की ट्रेडिंग हुई। यह अनुपात अगले दशक में भी बने रहने की संभावना है। एशिया के सबसे बड़ा चावल निर्यातक क्षेत्र बने रहने के आसार हैं। लैटिन अमेरिका और कैरेबियाई क्षेत्र के देश मुख्य रूप से गेहूं आयात करेंगे और मक्के का निर्यात करेंगे। अनेक अफ्रीकी तथा एशियाई देशों की अगले दशक में अनाज आयात पर निर्भरता बढ़ेगी।

अनुमान है कि 2032 तक दुनिया में अनाज का ट्रेड 11% बढ़कर 53 करोड़ टन हो जाएगा। इस वृद्धि में गेहूं का योगदान सबसे अधिक 43%, मक्के का 34% और चावल का 20% रहेगा। मोटे अनाजों का हिस्सा  3% रहने की संभावना है। रूस सबसे बड़ा गेहूं निर्यातक बना रहेगा। 2032 में दुनिया के कुल गेहूं निर्यात में 23% हिस्सेदारी उसकी होगी। इसी तरह अमेरिका भी सबसे बड़ा मक्का निर्यातक बना रहेगा, उसके बाद ब्राजील होगा। यूरोपियन यूनियन मुख्य रूप से मोटे अनाज का निर्यातक रहेगा। भारत, थाईलैंड और वियतनाम चावल के बड़े निर्यातक बने रहेंगे। बीते वर्षों की तरह चीन में चारे की डिमांड अनाज बाजार में बड़ी भूमिका निभाएगी। अनुमान है कि चीन में मक्का और गेहूं का आयात थोड़ा कम होगा। 2032 में वहां मक्के का आयात 1.9 करोड़ टन और गेहूं का 75 लाख टन रहने का अनुमान है। 2023-24 के सीजन में अनाज की कीमतों में वृद्धि जारी रहेगी, लेकिन आने वाले समय में उत्पादकता बढ़ने और भू राजनीतिक स्थिरता आने के बाद कीमतों में कमी आएगी और वह ट्रेंड 2032 तक बना रहेगा। 

इस वर्ष गेहूं उत्पादन बढ़ने, चावल का घटने का अनुमान

2022-23 के सीजन में गेहूं और मोटे अनाज की बाजार परिस्थितियां पिछले सीजन के मुकाबले बेहतर हैं। वैश्विक उत्पादन अभूतपूर्व स्तर पर पहुंच गया है और दुनिया में इसका स्टॉक बढ़ रहा है। दूसरी तरफ से मक्का तथा अन्य मोटे अनाजों का उत्पादन इतना नहीं हो रहा कि मांग पूरी हो रके। इसलिए 2023 के सीजन के अंत में दुनिया में मोटे अनाजों का स्टॉक कम होने के आसार हैं। ब्लैक सी ग्रेन इनीशिएटिव के चलते अप्रैल 2023 तक 1.5 करोड़ टन अनाज की सप्लाई हुई तथा इससे अनाज बाजार में अनिश्चितता कुछ हद तक कम हुई। (रूस ने जुलाई 2023 में इस समझौते को खत्म करने की घोषणा की।)

जहां तक चावल की बात है तो लगातार कई वर्षों तक बंपर उत्पादन होने के बाद मौसम के प्रभाव तथा उत्पादन लागत में वृद्धि के चलते 2022-23 के सीजन में दुनिया में इसका उत्पादन कम होने की आशंका है। उत्पादन घटने तथा नीतियों में बदलाव के चलते दुनिया में चावल का इस्तेमाल भी कम होगा तथा 2023 में इसकी ट्रेडिंग कम होगी। हालांकि कुछ देश अपने यहां चावल स्टॉक बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, इसलिए सीजन के अंत में ग्लोबल स्टॉक दूसरे सबसे ऊंचे स्तर पर होगा।

40% अनाज का इस्तेमाल भोजन में होगा

अनाज की सबसे अधिक खपत खाने में और उसके बाद चारे के रूप में होगी। वर्ष 2032 में कुल अनाज उत्पादन का 40% प्रत्यक्ष रूप से लोगों के खाने में जाएगा, 37% उत्पादन पशुओं के चारे में इस्तेमाल होगा, बाकी 23% बायोफ्यूल तथा अन्य कार्यों में इस्तेमाल किया जाएगा। हालांकि यह अनुपात फसलों के हिसाब से अलग-अलग है। गेहूं और चावल मुख्य रूप से भोजन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। मक्का तथा अन्य मोटे अनाज चारे के रूप में प्रयोग होते हैं। दुनिया में अनाज का मौजूदा इस्तेमाल 2.8 अरब टन के आसपास है, जिसके 2032 तक 3.1 अरब टन तक पहुंचने का अनुमान है।

लोगों के खाने में अनाज की मांग का इस्तेमाल 14.8 करोड़ टन बढ़ेगा जबकि चारे में इस्तेमाल 13 करोड़ टन बढ़ने के आसार हैं। डिमांड में अधिक वृद्धि एशियाई देशों से आएगी। चारे के रूप में अनाज की मांग में वृद्धि सबसे अधिक मक्के में 1.3% प्रतिवर्ष, गेहूं में 0.9% तथा मोटे अनाज में 0.6% प्रतिवर्ष रहेगी। भोजन में अनाज के प्रयोग में वृद्धि की दर पिछले दशक की तुलना में कम रहने की संभावना है। हालांकि गेहूं की मांग 2025 तक 11% बढ़ने के आसार हैं। इसमें से 40% वृद्धि भारत, पाकिस्तान, मिस्र और चीन से आएगी। लोगों के भोजन में गेहूं का इस्तेमाल 5.7 करोड़ टन बढ़ेगा लेकिन कुल खपत की तुलना में इसके 66% पर स्थिर रहने की संभावना है। 

भोजन के रूप में गेहूं की खपत में वृद्धि चारे की तुलना में तीन गुना होगी। यह वृद्धि मुख्य रूप से एशिया से आएगी जहां नूडल जैसे प्रोसेस्ड फूड की मांग बढ़ने की संभावना है। अगले एक दशक के दौरान मक्के की खपत हर साल 1.2% की दर से बढ़ने की संभावना है, जबकि पिछले दशक में इसमें 2.3% की दर से वृद्धि हुई थी। मोटे अनाजों की मांग में वृद्धि की दर अधिक होगी। वर्ष 2032 तक के उनके डिमांड सालाना 0.8% की दर से बढ़ने की संभावना है जबकि पिछले दशक में हर साल 0.2% की दर से वृद्धि हुई थी। चावल की डिमांड की वृद्धि दर अधिक रहेगी। हर साल इसकी खपत 1.1% बढ़ने के आसार हैं। मांग में जो वृद्धि होगी, उसका 66% एशियाई देशों से निकलेगी। इसकी प्रमुख वजह प्रति व्यक्ति खपत बढ़ना नहीं बल्कि आबादी में वृद्धि होगी।

Subscribe here to get interesting stuff and updates!