भारतीय कृषि वर्ष 2030 कीओर, किसानों की आय वृद्धि, पोषण सुरक्षा और सतत खाद्य प्रणाली पर राष्ट्रीय संवाद

नेशनल डायलॉग को आयोजित करने का उद्देश्य साल 2020 से 2030 के बीच जरूरी परिवर्तन और बदलावों को केंद्रित करते हुए एक दशक में हरित क्रांति के उपरांत की भारतीय कृषि के भावी स्वरूप पर केंद्रित है।

भारतीय कृषि वर्ष  2030 कीओर,  किसानों की आय वृद्धि, पोषण सुरक्षा और सतत खाद्य प्रणाली पर राष्ट्रीय संवाद

नीति आयोग, कृषि एवं  किसान कल्याण मंत्रालय और संयुक्त राष्ट्र के संगठन फूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन (एफएओ) ने भारतीय कृषि पर नेशनल डायलॉग आयोजित करने की प्रक्रिया 2019 में शुरू की थी। भारतीय कृषि के बुनियादी परिवर्तन के लिए संबंधित पक्षों के बीच एक स्वस्थ्य विचार प्रक्रिया शुरू करना इस वार्तालाप का मुख्य उद्देश्य है। नेशनल डायलॉग को आयोजित करने का उद्देश्य साल 2020 से 2030 के बीच जरूरी परिवर्तन और बदलावों को केंद्रित करते हुए एक दशक में हरित क्रांति के उपरांत की भारतीय कृषि के भावी स्वरूप पर केंद्रित है।  

विचार विमर्श प्रक्रिया का पहला चरण बुनियादी परिवर्तन के लिए जरूरी क्षेत्रों के मुद्दों की पहचान करना था। नीति आयोग, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और एफएओ की एक संयुक्त स्टीयरिंग कमेटी के निर्देशन में यह काम हुआ। कृषि क्षेत्र के अनुभवी विशेषज्ञों को चुने गये विषयों पर पेपर लिखने का जिम्मा दिया गया । 19 जनवरी से 22 जनवरी, 2021 के दौरान वर्चुअल रूप में आयोजित हो रहे ‘नेशनल एग्रीकल्चर डायलॉग-2030’ में इन पेपर के प्रस्तुतीकरण के साथ उन पर चर्चा हो रही है।

कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय के सचिव संजय अग्रवाल ने उद्घाटन सत्र में मुख्य  अतिथि उपराष्ट्रपति एम. वैंकैया नायडु समेत सभी मेहमानों का  स्वागत किया।

कांफ्रेंस का उद्घाटन सत्र 19 जनवरी, 2021 को आयोजित किया गया। कार्यक्रम का उद्घाटन  मुख्य अतिथि उपराष्ट्रपति एम. वैंकैया नायडू ने किया। अपने उद्घाटन संबोधन में उन्होंने कहा कि कृषि भारत की आत्मा है। यह केवल खाद्य सुरक्षा के लिए ही अहम नहीं है बल्कि देश की अर्थव्यवस्था और देश की आधी आबादी का जीवनयापन भी कृषि पर ही निर्भर है। साथ ही यह हमारी पर्यावरण, संस्कृति और सभ्यता का स्तंभ है। उन्होंने कहा कि कृषि  टिकाऊ होनी चाहिए, इसे समग्रता में देखना चाहिए जिसमें पशुपालन, पॉल्ट्री, मत्स्यपालन और मधुमक्खी पालन भी समाहित हों। उपराष्ट्रपति ने भारतीय कृषि में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का जिक्र करते हुए कहा कि नीतियों के निर्माण के समय महिला किसानों को प्राथमिकता देने की जरूरत है। उन्होंने एग्री आंत्रप्रेन्योरशिप को बढ़ावा देने की जरूरत बताते हुए कहा कि हमें कृषि से प्रतिभा पलायन को रोकने पर जोर देना चाहिए।

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण राज्य मंत्री पुरुषोत्तम रुपाला ने कहा कि भारत सरकार कृषि उत्पादकता में बढ़ोतरी के साथ प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन पर जोर दे रही है। भारत को अब आर्गनिक और पोषक भोजन का केंद्र बनना चाहिए। प्रधानमंत्री ने किसानो की आय दोगुना करने का राष्ट्रीय लक्ष्य तय किया है। इसे हासिल करने के लिए स्मार्ट एग्रीकल्चर के मकसद से डिजिटल सिस्टम स्थापित करने पर तेज प्रगति हुई है। फसल उपरांत नुकसान को कम करने के लिए कई कार्यक्रम चल रहे हैं। उन्होंने  2020 में टिड्डी दल हमलों के खतरे से निपटने और फसलों के नुकसान को कम करने लिए उठाये गये कदमों का भी जिक्र किया।    

इस सत्र को संबोधित करते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा कि हमने खाद्य सुरक्षा तो हासिल कर ली है लेकिन पोषण सुरक्षा नहीं। उन्होंने कहा कि हमें फसल चक्र पर गंभीरता से विचार करना चाहिए। हमें देखना होगा कि  बेहतर पोषक भोजन का उत्पादन करने  लिए क्या उत्पादन करना चाहिए और उसके लिए उत्पादन में किस तरह के विविधिकरण की जरूरत है। उन्होंने रसायनों के अत्यधिक उपयोग का मुद्दा उठाते हुए कहा कि इस तरह की खेती का दौर चला गया है अब बड़ी जोत में मशीनीकरण से होने वाली खेती की नीति पर पुनर्विचार की जरूरत है। अपने भाषण में उन्होंने कृषि से बेहतर आय पर जोर देते हुए कहा कि किसानों के बच्चे खेती करें उसके लिए यह जरूरी है। वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए कृषि में सूचना प्रौद्योगिकी, पर्सिसन फार्मिंग, समान पानी की मात्रा से अधिक उत्पादन और नवीनतम तकनीक को बढ़ावा देने की जरूरत है। कृषि में विविधता के साथ ही उसका उत्पादक और टिकाऊ होना भी जरूरी है।

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए नीति आयोग के सदस्य प्रोफेसर रमेश चंद ने कहा कि अब पूरा जोर पोषक, सुरक्षित और पारंपरिक भोजन पर होना चाहिए। यह मौजूदा खाद्य जिन्सों के लिए चुनौती लेकर आया है क्योंकि अभी पोषक भोजन की उपलब्धता और मांग के बीच असंतुलन की स्थिति है। हमें टिकाऊ खेती की जरूरत है। भोजन का यह उत्पादन ज्यादा प्रतिकूल परिस्थितियों में करना होगा। हमारे सामने चुनौती है कि हम अधिक भोजन उत्पादन करें या जो अभी हो रहा है उतना उत्पादन करें लेकिन ग्रीन हाउस गैसों (जीएचजी) का उत्सर्जन कम होना चाहिए। इसलिए हमें उस टिकाऊ खेती की जरूरत है जिसमें हम उत्पादन और आय में बढ़ोतरी तो करें लेकिन ग्रीन हाउस गैस के उत्सर्जन में कमी लाने के साथ जलवायु परिवर्तन से भी तालमेल बनाकर रखें। पर्यारवण का संरक्षण और इकोसिस्टम को बरकार रखते हुए फसलों, पशुपालन, फिशरीज और कृषि वानिकी के बीत संतुलन बनाते हुए  पानी और भूमि जैसे संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल के जरिये यह उत्पादन और आय बढ़ोतरी हमें हासिल करनी होगी। हमें ऐसी वैकल्पिक कृषि पद्धति अपनानी होंगी जो विभिन्न क्षेत्रों के लिए अनुकूल हो और जीएचजी का उत्सर्जन कम करे लेकिन प्रतिकूल मौसम के बावजूद उत्पदकता को बरकरार रख सके। उन्होंने कहा कि आठ विषयों पर होने वाले सत्रों में अगले तीन दिन तक नीति आयोग, कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय और एफएओ साथ मिलकर चुनौतियों के समाधान ढ़ूंढ़ने की कोशिश करेंगे।

एफएओ के एशिया-प्रशांत क्षेत्र के क्षेत्रीय प्रतिनिधि जोंग-जिन किम ने एफएओ के महानिदेशक के प्रतिनिधि के रूप में नीति आयोग और भारत सरकार को यह पालिसी डायल़ॉग आयोजित करने के लिए बधाई देते हुए कहा कि पिछले 75  साल से एफएओ ने भूख के मुद्दे को हल करने  के लिए किसानों और दूसरे संबंधित पक्षों के साथ करीब से मिलकर काम किया है। कोविड-19 जैसी अप्रत्याशित महामारी ने तमाम गतिविधियों को प्रभावित किया है लेकिन वह कई मौके भी लेकर आई है। एफएओ भारत में मौजूद चुनौतियों को समझता है जो एक राष्ट्र के नाते एक अरब की आबादी के साथ ढांचागत और आर्थिक सुधारों के नाजुक मोड़ पर खड़ा है। ऐसे में यह नेशनल डायलॉग सही समय पर आयोजित हो रहा है।

इस नेशनल एग्रीकल्चर डायलॉग में 22 जनवरी तक आठ विषयों पर तैयार पेपरों पर भारतीय कृषि में बुनियादी बदलाव को लेकर चर्चा होगी। यह सभी पेपर ऑनलाइन fao-in@fao.org   पर उपलब्ध हैं और पाठक उन पर 1 मार्च, 2021 तक अपनी राय भी दे सकते हैं। 

 

 

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