एमएसपी कमेटी के किसान सदस्यों की राय- फसलों की रिजर्व प्राइस को कानूनी मान्यता और सीएसीपी को वैधानिक दर्जा मिले

एमएसपी के मुद्दे पर गठित समिति में फसलों की न्यूनतम कीमत को कानूनी मान्यता देने पर विचार किया जा रहा है। समिति में शामिल किसान प्रतिनिधियों ने ए2प्लस एफएल लागत के ऊपर 50 फीसदी राशि जोड़कर रिजर्व प्राइस तय करने का प्रस्ताव दिया है। इसमें कहा गया है कि रिजर्व प्राइस का कानूनी प्रावधान किया जाए और किसी को भी उससे कम कीमत पर किसानों से फसल खरीदने की अनुमति न हो। मंडियों में नीलामी रिजर्व प्राइस से ही शुरू हो, उससे कम पर नहीं। रिजर्व प्राइस से कम पर खरीदने वालों पर जुर्माना लगे।

एमएसपी कमेटी के किसान सदस्यों की राय- फसलों की रिजर्व प्राइस को कानूनी मान्यता और सीएसीपी को वैधानिक दर्जा मिले
प्रतीकात्मक फोटो

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) के मुद्दे पर गठित समिति में फसलों की न्यूनतम कीमत को कानूनी मान्यता देने पर विचार किया जा रहा है। समिति में शामिल किसान प्रतिनिधियों ने ए2प्लस एफएल लागत के ऊपर 50 फीसदी राशि जोड़कर रिजर्व प्राइस तय करने का प्रस्ताव दिया है। इसमें कहा गया है कि रिजर्व प्राइस का कानूनी प्रावधान किया जाए और किसी को भी उससे कम कीमत पर किसानों से फसल खरीदने की अनुमति न हो। मंडियों में नीलामी रिजर्व प्राइस से ही शुरू हो, उससे कम पर नहीं। रिजर्व प्राइस से कम पर खरीदने वालों पर जुर्माना लगे।

हालांकि सरकार के मुताबिक ए2प्लस एफएल लागत पर 50 फीसदी राशि जोड़कर एमएसपी 2018 से तय की जा रही है। लेकिन जहां तक अधिकांश बड़े किसान संगठनों की बात है तो वह सी2 लागत पर 50 फीसदी राशि जोड़कर एमएसपी तय करने और उसे लागू करने की कानूनी गारंटी की मांग कर रहे हैं। आंदोलनकारी किसान संगठनों की यही मांग थी। यह बात अलग है कि संयुक्त किसान मोर्चा के घटकों ने सरारक द्वारा बनाई गई समिति में शामिल होने से इनकार कर दिया था। लेकिन समिति में शामिल किसानों राय से लगता है कि वह एमएसपी निर्धारण के फार्मूले के मामले में सरकार के साथ ही चल रहे हैं।

तीन कृषि कानूनों के खिलाफ साल भर से अधिक चले किसान आंदोलन को समाप्त करने की सहमति के बाद एमएसपी के मुद्दे पर समिति बनाई गई थी। इस समिति के तहत एक सब ग्रुप ऑन एमएसपी इफेक्टिवनेस एंड ट्रांसपेरेंसी बनी थी। इसी उप-समिति ने रिजर्व प्राइस का सुझाव समिति के चेयरमैन को दिया है। इस उप-समिति में कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएपीसी) के सदस्य नवीन पी सिंह, किसान नेता पाशा पटेल, गुणवंत पाटिल और कृष्णबीर चौधरी सदस्य हैं। रूरल वॉयस ने इन प्रस्तावों के दस्तावेजों को देखा है।  

प्रस्ताव में कहा गया है कि मंडियों में कृषि उत्पादों की बोली रिजर्व प्राइस के ऊपर ही शुरू होनी चाहिए। राज्य सरकारें इसके लिए कानूनी प्रावधान करें। समिति का कहना है कि देश में कृषि उत्पादों पर आयात शुल्क निर्धारित करने में इस तथ्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए कि आयात रिजर्व प्राइस से कम कीमत पर न हो।

सीएसीपी को वैधानिक दर्जा देने अथवा स्वायत्त बनाने और किसी किसान प्रतिनिधि को इसका अध्यक्ष बनाने की सिफारिश भी इस उप-समिति ने की है। इसके प्रस्ताव में कहा गया है कि फसलों की लागत का आकलन करने के सीएसीपी के मौजूदा फार्मूले को बदलकर वास्तविक लागत को आधार बनाया जाए। किसानों को कहीं भी अपनी फसल बेचने की छूट हो और देश भर में किसानों को डेफिसिएंसी पेमेंट का प्रावधान किया जाए। मंडी टैक्स की दरें भी पूरे देश में एक समान हों।

उप-समिति की अन्य सिफारिशों में उत्पादन की वास्तविक लागत का आकलन करने के लिए अलग समिति बनाना, सैंपल साइज में ज्यादा संख्या में किसानों को शामिल करना, एमएसपी तय करते वक्त विभिन्न राज्यों में दी जा रही सब्सिडी पर भी गौर करना, किसान, व्यापारी, उपभोक्ता और सरकार के प्रतिनिधियों को मिलाकर जिला स्तर पर विवाद निस्तारण अथॉरिटी बनाना शामिल हैं।

केंद्र सरकार ने पूर्व कृषि सचिव संजय अग्रवाल की अध्यक्षता में एमएसपी समिति बनाई थी। लेकिन समिति का दायरा एमएसपी तक सीमित न रखते हुए इसमें सीएसीपी की कार्यशैली और प्राकृतिक खेती जैसे विषय जोड़े गये थे। समिति का गठन 12 जुलाई, 2022 को एक गजट नोटिफिकेशन के जरिये किया गया था। इसकी पहली बैठक 22 अगस्त, 2022 को हुई थी। समिति ने देश के अलग-अलग हिस्सों में कई बैठकें की हैं। हालांकि, गठन के एक साल बाद भी यह कहना मुश्किल है कि इसकी सिफारिशें कब आएंगी।

सूत्रों के मुताबिक समिति की सिफारिशों पर सदस्यों में तीखे मतभेद हैं। सबसे विवादित मुद्दा एमएसपी की जगह रिजर्व प्राइस तय कर उसे कानूनी रूप देने का है। सीएसीपी को वैधानिक दर्जा देकर उसमें किसान प्रतिनिधियों को प्रमुखता के प्रस्ताव पर भी कई सदस्य सहज नहीं हैं। कुछ सदस्यों ने राष्ट्रव्यापी रायशुमारी का सुझाव दिया है तो कुछ सदस्यों का कहना है कि निर्यात पर सारे प्रतिबंध समाप्त कर आवश्यक वस्तु अधिनियम को भी खत्म कर दिया जाए। यह बात अलग है कि सरकार ने पिछले डेढ़ साल से खाद्य उत्पादों की कीमतों को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम के प्रावधानों का लगातार इस्तेमाल किया है।

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