चने की कीमत एमएसपी से 15 फ़ीसदी तक कम, किसान हुए मायूस

चने का एमएसपी पिछले साल के 5,100 रुपए से बढ़ाकर 5,230 रुपए प्रति क्विंटल किया गया, लेकिन मंडियों में चने का भाव एमएसपी से 500 से 700 रुपए यानी 10 से 15 फ़ीसदी कम चल रहा है। इस बार रबी की दलहन फसलों की बेहतर पैदावार की उम्मीद है, लेकिन चना उत्पादक किसान मायूस हैं

चने की कीमत एमएसपी से 15 फ़ीसदी तक कम, किसान हुए मायूस

देश में इन दिनों अधिकतर कृषि उपज के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य एमएसपी से ऊपर चल रहे हैं, लेकिन रबी की मुख्य दलहन फसल चने की कीमत एमएसपी से नीचे चली गई है। चने का एमएसपी पिछले साल के 5,100 रुपए से बढ़ाकर 5,230 रुपए प्रति क्विंटल किया गया, लेकिन मंडियों में चने का भाव एमएसपी से 500 से 700 रुपए यानी 10 से 15 फ़ीसदी कम चल रहा है। इस बार रबी की दलहन फसलों की बेहतर पैदावार की उम्मीद है, लेकिन चना उत्पादक किसान मायूस हैं।

चने की फसल मंडियों में आनी शुरू हो गई है। रूरल वॉयस से बात करते हुए मध्य प्रदेश के सतना जिले के गांव बनवस्ता के किसान अमित उर्मेलिया ने बताया कि हमने एक सप्ताह पहले 5,600 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से चना बाजार में बेचा था, लेकिन अब बाजार में चने के भाव में कमी आ गई है। फिलहाल व्यापारी मंडियों में 4,800 रुपये प्रति क्विंटल के भाव से खरीदारी कर रहे हैं।

उत्तर प्रदेश के जिला कानपुर के शाकाहारी गांव के किसान देवेंद्र कुमार वर्मा ने बताया कि करीब तीन एकड़ में चना लगाया है। वे अपनी फसल बेचना चाहते हैं, लेकिन फिलहाल कानपुर मंडी में 4,600 रुपए प्रति क्विंटल का भाव चल रहा है। उन्होंने कहा कि अगर हम सरकारी क्रय केंद्र पर बेचते हैं, तो वजन घटाने से लेकर कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। उपज का मूल्य पाने के लिए तीन महीने तक इंतजार करना पड़ता है। बेहतर है कि अगर हमें बाजार में थोड़ी कम कीमत मिले तो हम बाजार में बेच देंगे। राज्य भंडारण निगम, नेफेड और खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग की सरकारी एजेंसियां ​​खरीद करती हैं।

रबी की दलहन की दूसरी प्रमुख फसल मसूर की स्थिति बेहतर है। इसका एमएसपी 5,200 रुपये से बढ़ाकर 5,500 रुपये प्रति क्विंटल किया गया था और वर्तमान में मसूर की कीमत 6,500 से 6,800 रुपये प्रति क्विंटल है। हालांकि इसके भी मूल्य कम होने की संभावना है क्योंकि स्टॉकिस्टों और मिल मालिकों की तरफ से मांग में गिरावट की आशंका है। सरकार ने अमेरिका को छोड़कर सभी देशों की मसूर की दाल पर आयात शुल्क घटाकर शून्य प्रतिशत कर दिया है। इस साल उत्पादन पिछले साल के मुकाबले 10 फीसदी ज्यादा, करीब 15.8 लाख टन रहने का अनुमान है।

दलहन रकबे में पिछले साल की तुलना में 2.17 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। पिछले साल दलहन की बुवाई 166.10 लाख हेक्टेयर में हुई थी, जबकि इस साल 168.27 हेक्टेयर में हुई। चने के रकबे में 4.57 लाख हेक्टेयर की वृद्धि हुई है। पिछले साल 110.38 लाख हेक्टेयर में चने की खेती की गई थी, इस साल 114.95 लाख हेक्टेयर में इसकी खेती की गई थी। इस वर्ष चने का रिकॉर्ड उत्पादन (2021-22 में) 13.1 करोड़ टन होने का अनुमान है। वर्ष 2020-21 में उत्पादन 11.9 करोड़ टन था। दरअसल, पिछले साल दालों की कीमतों में तेज उछाल को देखते हुए किसानों ने इस साल अधिक चना की खेती की थी।

पिछले साल दाल की कीमतों में तेज उछाल को देखते हुए सरकार ने दालों की कीमतों में तेजी को रोकने के लिए चने पर कई तरह की पाबंदियां लगाई थीं। 15 मई, 2021 से 31 अक्टूबर, 2021 तक 'मुक्त श्रेणी' के तहत अरहर, उड़द और मूंग के आयात की अनुमति भी दी गई थी। इसके बाद अरहर और उड़द के आयात की मुक्त व्यवस्था को 31 मार्च 2022 तक बढ़ा दिया गया। भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) ने पिछले साल दिसंबर में दालों की कीमतों में वृद्धि को रोकने के लिए नेशनल कमोडिटी एंड डेरिवेटिव्स एक्सचेंज (एनसीडीईएक्स) पर चने के कारोबार पर कुछ प्रतिबंध लगाए और चना को वायदा कारोबार से हटा दिया गया।

भारत दालों का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता है। यह दालों के वैश्विक उत्पादन में लगभग 24 फीसदी का योगदान देता है। पिछले पांच-छह वर्षों में देश में दालों का उत्पादन 1.4 करोड़ टन से बढ़कर 24 करोड़  टन हो गया है। अगर किसानों को दाल का उचित मूल्य नहीं मिला तो किसान दलहनी फसलों की बुआई कम करेंगे। अनुमान के मुताबिक साल 2050 तक देश में दालों की सालाना जरूरत करीब 320 लाख टन पहुंच जाएगी।

Subscribe here to get interesting stuff and updates!