सरकार और किसानों के बीच 30 दिसंबर को फिर बातचीत, क्या निकलेगा कोई रास्ता
कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसानों के बीच एक बार फिर बातचीत का रास्ता खुला है। प्रदर्शनकारी किसान संगठन नए कृषि कानूनों को लेकर 30 दिसंबर को वार्ता के अगले दौर को लेकर सरकार के प्रस्ताव पर सहमत हो गए हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को अपने बैठक के एजेंडे के बारे में बताना चाहिए।
कृषि कानूनों को लेकर सरकार और किसानों के बीच एक बार फिर बातचीत का रास्ता खुला है। प्रदर्शनकारी किसान संगठन नए कृषि कानूनों को लेकर 30 दिसंबर को वार्ता के अगले दौर को लेकर सरकार के प्रस्ताव पर सहमत हो गए हैं, लेकिन उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को अपने बैठक के एजेंडे के बारे में बताना चाहिए।
संयुक्त किसान मोर्चा के अनुसार केंद्र द्वारा प्रस्तावित तारीख पर बैठक में भाग लेने के लिए किसान सहमत हो गए हैं। केंद्र ने वार्ता के लिए 30 दिसंबर की तारीख के लिए पत्र भेजा है। जिसके बाद किसानों ने प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया। इसके पहले किसान पहले 29 दिसंबर को वार्ता चाहते थे। संयुक्त किसान मोर्चा, विवादास्पद कानून के खिलाफ 40 किसान संगठनों का यह प्रतिनिधि संगठन है।
किसानों की यह है मांग
संयुक्त किसान मोर्चा के अनुसार , सरकार को 26 दिसंबर को भेजे गए पत्र में किसानों ने तीन कृषि कानूनों को वापस लेने और एमएसपी की कानूनी गारंटी का जिक्र किया था। लेकिन इसके बावजूद सरकार ने वार्ता के लिए भेजे गए पत्र में किसी विशिष्ट एजेंडे का जिक्र नहीं किया है। फिर भी किसान सैद्धांतिक रूप से सरकार के साथ वार्ता करने के लिए सहमत हो गए हैं अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (एआईकेएससीसी) ने एक बयान में कहा कि प्रदर्शनकारी किसान बैठक में चार विशिष्ट एजेंडों को शामिल करना चाहते हैं जिसमें ‘तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को वापस लेने के तौर तरीकों को अपनाना’ भी शामिल है।
मांगे नहीं मानने पर आंदोलन होगा तेज
इस बीच एक महीने से अधिक समय से पंजाब, हरियाणा और उत्तरप्रदेश सहित देश के विभिन्न हिस्सों के किसान तीनों नये कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग करते हुए दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए हैं। किसानों ने चेतावनी दी है कि अगर उनकी मांगें नहीं मानी गईं तो वे अपना आंदोलन तेज करेंगे।
सरकार को भरोसा निकल जाएगा हल
इस बीच केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा है जल्द ही कुछ रास्ता निकलेगा और हम समाधान तक पहुंचेंगे। उनके अनुसार कुछ लोगों ने आंदोलनकारी किसानों के दिलों में ‘‘सुनियोजित तरीके से गलतफहमी पैदा कर दी है।’’ नये कृषि कानूनों के लाभ किसानों तक पहुंचने शुरू हो गए हैं। कई किसान इन कानूनों के बारे में ‘‘सकारात्मक सोचने’’ लगे हैं लेकिन किसानों के कुछ धड़े में ‘‘भ्रम’’ बना हुआ है। मुझे उम्मीद है कि हम इन चिंताओं को दूर करने में सफल होंगे।

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