बढ़ती आयात निर्भरता, सात महीनों में 19.63 लाख टन दालों का आयात

इस साल कमजोर मानसून और अल-नीनो प्रभाव के चलते देश के दलहन उत्पादन को झटका लग सकता है। घरेलू खपत को पूरा करने के लिए दालों का आयात बढ़ रहा है। महंगाई रोकने की तमाम कोशिशों के बावजूद नवंबर में दालों की महंगाई दर 20.23 फीसदी तक पहुंच गई। खाद्य वस्तुओं की महंगाई बढ़ने से खुदरा महंगाई दर 3 महीने के उच्चतम स्तर 5.55 प्रतिशत पर है। दालों के आयात पर बढ़ती निर्भरता से दलहन उत्पादन बढ़ाने की नीतियों पर भी सवाल उठने लगे हैं।

बढ़ती आयात निर्भरता, सात महीनों में 19.63 लाख टन दालों का आयात

इस साल कमजोर मानसून और अल-नीनो प्रभाव के चलते देश के दलहन उत्पादन को झटका लग सकता है। घरेलू खपत को पूरा करने के लिए दालों का आयात बढ़ रहा है। महंगाई रोकने की तमाम कोशिशों के बावजूद नवंबर में दालों की खुदरा महंगाई दर 20.23 फीसदी तक पहुंच गई। खाद्य वस्तुओं की महंगाई बढ़ने से खुदरा महंगाई दर 3 महीने के उच्चतम स्तर 5.55 प्रतिशत पर है। दालों के आयात पर बढ़ती निर्भरता से दलहन उत्पादन बढ़ाने की नीतियों पर भी सवाल उठने लगे हैं। 

कुछ साल पहले देश में दलहन उत्पादन बढ़ाने में कामयाबी मिली थी। लेकिन मौजूदा वित्त वर्ष में अप्रैल-अक्टूबर के दौरान भारत ने कुल 19.63 लाख टन दालों का आयात किया। लोकसभा में एक लिखित जवाब में कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा ने यह जानकारी दी। भारत हर साल अपनी जरूरत का लगभग 10-15 फीसदी यानी करीब 25 लाख टन दालों का आयात करता है। लेकिन इस साल सात महीने में ही दालों का आयात 20 लाख टन के करीब पहुंच गया। दलहन की बुवाई के क्षेत्र और उत्पादन में कमी को देखते हुए अब ब्राजील और अर्जेंटीना से दाल आयात की कोशिशें की जा रही हैं। 

दलहन उत्पादन में गिरावट 

दालों पर एमएसपी बढ़ाकर दलहन उत्पादन बढ़ाने की रणनीति कारगर रही थी। इसी का नतीजा है कि दलहन उत्पादन साल 2018-19 में 220.76 लाख टन से बढ़कर 2021-22 में 273.02 लाख टन तक पहुंच गया था। लेकिन इस बीच कई इलाकों में किसानों को दालों के सही दाम नहीं मिल पाए। और एमएसपी से नीचे दालें बेचने को मजबूर होना पड़ा। ऊपर से मौसम की मार। इन्हीं सब वजहों से 2022-23 में दलहन उत्पादन घटकर 260.58 लाख टन रह गया।

कृषि मंत्रालय के पहले अग्रिम अनुमानों के मुताबिक, चालू खरीफ सीजन में दलहन उत्पादन 71.18 लाख टन रहेगा जो पिछले साल के मुकाबले करीब पांच लाख टन कम है। वर्ष 2016-17 के बाद खरीफ सीजन में यह दालों का यह सबसे कम उत्पादन है। साल 2016-17 के खरीफ सीजन में दलहन उत्पादन 95.85 लाख टन रहा था। तब से खरीफ सीजन में दालों का उत्पादन 2016-17 के स्तर को नहीं छू पाया। मतलब, दालों के मामले में कुछ साल पहले हासिल हुई कामयाबी को छू पाना भी मुश्किल हो रहा है। जबकि घरेलू खपत लगातार बढ़ती जा रही है।  

घटी दलहन की बुवाई 

कमजोर मानसून और मजबूत अल नीनो के चलते इस साल कृषि उत्पादन प्रभावित होने की आशंका है। इससे किसानों को तो नुकसान होगा ही, महंगाई के मोर्चे पर सरकार के लिए भी मुश्किलें खड़ी होंगी। एनएसओ के अनुसार, नवंबर में खाद्य महंगाई दर 8.7 फीसदी रही जो पिछले साल नवंबर में 4.67 फीसदी थी। खाने-पीने की चीजों की महंगाई रोकना सरकार के लिए बड़ी चुनौती है।

चिंता की बात यह है कि इस साल खरीफ सीजन में दलहन की बुवाई पिछले साल के मुकाबले 5.41 लाख हेक्टेअर (4.2 फीसदी) घटकर 123.57 लाख हेक्टेअर रही है, जबकि खरीफ में दलहन का सामान्य क्षेत्र 139.70 लाख टन माना जाता है। सामान्य क्षेत्र की तुलना में खरीफ सीजन में दलहन बुवाई 11.5 फीसदी कम क्षेत्र में होना खतरे की घंटी है। यह कमी मुख्यत: अरहर (तुहर) और मूंग की बुवाई कम होने की वजह से आई है। मौसम के अलावा बुवाई घटने के क्या कारण हैं, नीतियों में कहां चूक हो रही है, इसे समझने की जरूरत है।

आयात को बढ़ावा

दालों की उपलब्धता सुनिश्चित करने और महंगाई पर अंकुश लगाने के लिए केंद्र सरकार ने जून में अरहर और उड़द के भंडारण पर स्टॉक लिमिट लगा दी थी जिसे सितंबर में और घटा दिया। दालों के आयात को सुगम बनाने के लिए अरहर, मसूर और उड़द के ड्यूटी फ्री आयात की अनुमति दी गई है। इन रियायतों की वजह से भी दालों का आयात बढ़ा है। हाल ही में सरकार ने पीली मटर के ड्यूटी फ्री आयात की भी अनुमति दी है। लेकिन सवाल है कि क्या आयात के रास्ते आत्मनिर्भरता आ सकती है?  

नाबार्ड और इक्रीअर की एक रिसर्च रिपोर्ट बताती है कि भारत में दालों के साथ-साथ तिलहन के उत्पादन और घरेलू मांग के बीच अंतर आने वाले सात वर्षों यानी 2030 तक बना रहेगा। इसके चलते आयात पर निर्भरता रहेगी। इसलिए दलहन उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है। लेकिन यह भी देखना होगा कि देश में दलहन उत्पादन बढ़ने के बाद आखिर कहां चूक हुई।

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