पंजाब में चुनाव लड़ने वाले संगठनों को एसकेएम का समर्थन नहीं, वादा उल्लंघन के खिलाफ 31 जनवरी को सरकार का देशव्यापी विरोध

संयुक्त किसान मोर्चा ने कहा है कि पंजाब के चुनाव में किसी पार्टी या उम्मीदवार द्वारा संयुक्त किसान मोर्चा के नाम या बैनर या मंच का कोई इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। अगर किसान संगठन या नेता चुनाव लड़ता है या जो चुनाव में किसी पार्टी के लिए मुख्य भूमिका निभाता है तो वह संयुक्त किसान मोर्चा में नहीं रहेगा। इसके साथ ही एसकेएम ने सरकार द्वारा किसानों से वादाखिलाफी के खिलाफ 31 जनवरी को विश्वासघात दिवस मनाने का ऐलान  किया है इस दिन देश भर में  एसकेएम द्वारा जिला और तहसील स्तर पर बड़े रोष प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे। शनिवार को दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर हुई एसकेएम की बैठक के बाद मोर्चा ने यह घोषणा की

पंजाब में चुनाव लड़ने वाले संगठनों को एसकेएम का समर्थन नहीं, वादा उल्लंघन के खिलाफ  31 जनवरी को सरकार का देशव्यापी विरोध

कुछ किसान संगठनों द्वारा पंजाब के चुनाव में संयुक्त समाज मोर्चा के नाम से राजनीतिक दल बनाकर उम्मीदवार उतारने की घोषणा के बाद  संयुक्त किसान मोर्चा ने स्पष्ट किया कि शुरुआत से ही संयुक्त किसान मोर्चा ने यह मर्यादा बनाए रखी है कि उसके नाम, बैनर या मंच का इस्तेमाल कोई राजनैतिक दल न कर सके। यही मर्यादा चुनाव में भी लागू होती है। चुनाव में किसी पार्टी या उम्मीदवार द्वारा संयुक्त किसान मोर्चा के नाम या बैनर या मंच का कोई इस्तेमाल नहीं किया जाएगा। अगर कोई संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़ा जो भी किसान संगठन या नेता चुनाव लड़ता है, या जो चुनाव में किसी पार्टी के लिए मुख्य भूमिका निभाता है। वह संयुक्त किसान मोर्चा में नहीं रहेगा। जरूरत होने पर इस निर्णय की समीक्षा इन विधानसभा चुनावों के बाद अप्रैल माह में इसकी समीक्षा की जाएगी। संयुक्त किसान मोर्चा द्वारा शनिवार को दिल्ली के सिंघु बार्डर पर की गई बैठक के बाद यह घोषणा की गई है।

इसके साथ ही एसकेएम ने सरकार द्वारा किसानों से वादाखिलाफी के खिलाफ 31 जनवरी को  देशव्यापी विश्वासघात दिवस  का ऐलान  किया है। इस दिन देश भर में  एसकेएम द्वारा जिला और तहसील स्तर पर बड़े रोष प्रदर्शन आयोजित किए जाएंगे। सिंघु बॉर्डर पर हुई एसकेएम की बैठक में  भारत सरकार के  खिलाफ नराजगी  जताते कहा कि  किसान मोर्चा ने  9 दिसंबर के जिस पत्र की मांगों के सहमति के आधार पर हमने आन्दोलन को उठाने का फैसला किया था, सरकार ने उनमें से कोई वादा पूरा नहीं किया है।

एसकेएम ने कहा कि आंदोलन के दौरान हुए किसानों के उपर किए गयो  केस को तत्काल वापिस लेने के वादे पर हरियाणा सरकार ने कुछ कागजी कार्यवाही की है लेकिन मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और हिमाचल सरकार की तरफ से नाममात्र की भी कोई भी कार्यवाही नहीं हुई है। बाकी राज्य सरकारों को केंद्र सरकार की तरफ से चिट्ठी भी नहीं गई है।

एसकेएम ने कहा कि उत्तर प्रदेश सरकार ने शहीद किसान परिवारों को मुआवजा देने कोई कार्यवाही शुरू नहीं की है। हरियाणा सरकार की तरफ से मुआवजे की राशि और स्वरूप के बारे में कोई घोषणा नहीं की गई है। मएसपी के कोई जानकारी दी है।

एसकेएम का कहना है कि लखीमपुर खीरी हत्याकांड में केन्द्र सरकार ने सार्वजनिक जीवन की मर्यादा की कोई परवाह नहीं है। एसआईटी की रिपोर्ट में षड्यंत्र की बात स्वीकार करने के बावजूद भी इस कांड के प्रमुख षड्यंत्रकारी अजय मिश्रा टेनी का केंद्रीय मंत्रिमंडल में बने रहना किसानों के घाव पर नमक छिड़कने का काम है।दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश पुलिस इस घटना में नामजद किसानों को केसों में फंसाने और गिरफ्तार करने का काम मुस्तैदी से कर रही है। इसका विरोध करने के लिए संयुक्त किसान मोर्चा लखीमपुर खीरी में एक पक्के मोर्चे की घोषणा करेगा। संयुक्त किसान मोर्चा ने यह स्पष्ट किया है कि "मिशन उत्तर प्रदेश" जारी रहेगा, जिसके जरिए इस किसान विरोधी राजनीति को सबक सिखाया जाएगा।

एसकेएम ऐलान किया कि आगामी 23 और 24 फरवरी को देश की केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने मजदूर विरोधी चार लेबर कोड को वापस लेने के साथ-साथ किसानों को एमएसपी और प्राइवेटाइजेशन के विरोध जैसे मुद्दों पर राष्ट्रव्यापी हड़ताल का आह्वान किया है। संयुक्त किसान मोर्चा देश भर में ग्रामीण हड़ताल आयोजित कर इस हड़ताल का समर्थन और सहयोग करेगा।

एसकेएम का कहना है कि कुछ किसान संगठनों ने पंजाब के चुनाव में पार्टियां बनाकर उम्मीदवार उतारने की घोषणा के बाद  किसान  मोर्चे ने स्पष्ट किया कि शुरुआत से ही संयुक्त किसान मोर्चा ने यह मर्यादा बनाए है कि उसके नाम, बैनर या मंच का इस्तेमाल कोई राजनैतिक दल न कर सके। यही मर्यादा चुनाव में भी लागू होती है। चुनाव में किसी पार्टी या उम्मीदवार द्वारा संयुक्त किसान मोर्चा के नाम या बैनर या मंच का कोई इस्तेमाल नहीं किया जाएगा।  अगर कोई संयुक्त किसान मोर्चा से जुड़ा जो भी किसान संगठन या नेता चुनाव लड़ता है, या जो चुनाव में किसी पार्टी के लिए मुख्य भूमिका निभाता है, वह संयुक्त किसान मोर्चा में नहीं रहेगा। जरूरत होने पर इस निर्णय की समीक्षा इन विधानसभा चुनावों के बाद अप्रैल माह में की जाएगी।

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