उत्तर प्रदेश में पंचायतों को मजबूती देकर ‘लोकल को वोकल’ करना

राज्य के बजट में ग्रामीण विकास से ज्यादा शहरी विकास पर जोर। यहां लोकल को वोकल बनाने के लिए क्या कदम उठाए जाने चाहिए, इसके लिए दिए गए हैं छह सुझाव

उत्तर प्रदेश में पंचायतों को मजबूती देकर ‘लोकल को वोकल’ करना

उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में नई सरकार का गठन हो गया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वोकल फॉर लोकल यानी देश में बनी वस्तुओं को बढ़ावा देने की बात करते हैं। लेकिन यह कैसे संभव होगा? इसका एक रास्ता उत्तर प्रदेश के पंचायती राज संस्थानों को मजबूत करना हो सकता है, जहां आठ लाख से अधिक चुने गए प्रतिनिधियों को प्रभावी तरीके से साथ लेने की जरूरत है। इस लेख में लोकल को कैसे वोकल बनाया जा सकता है, इस बात पर जोर दिया गया है। लेकिन उससे पहले कुछ बातें बजट के बारे में। इस लेखक ने उत्तर प्रदेश के 2021-22 के बजट का जो विश्लेषण रूरल वॉयस में किया था उसमें बताया गया था कि ग्रामीण विकास के लिए 2020-21 में 31,402 दो करोड़ रुपए का बजट अनुमान था। साल 2021-22 के बजट अनुमान में इसे घटाकर 27,455 करोड़ रुपए कर दिया गया। यानी इसमें 13 फ़ीसदी की कटौती की गई।

इसके विपरीत शहरी विकास का बजट जो 2020-21 में 20,461 करोड़ था उसे 2021-22 के बजट अनुमान में 17 फ़ीसदी से अधिक बढ़ाकर 23,980 करोड़ रुपए कर दिया गया। अगर 2021-22 के शहरी विकास विभाग के बजट अनुमानों को 2020-21 के संशोधित अनुमानों से तुलना करें तो यह 58 फ़ीसदी अधिक होता है। इसका सीधा मतलब यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में शहरी विकास को अधिक महत्व दिया गया। जबकि शहरी क्षेत्रों में जो समस्याएं हैं वह एक तरह से ग्रामीण क्षेत्रों से ही वहां पहुंची हैं। विश्लेषण में यह भी पता चला कि राज्य के कुल व्यय में 5.4 फ़ीसदी हिस्सा ग्रामीण विकास के लिए था जो सभी राज्यों के राष्ट्रीय औसत 6.1 फ़ीसदी से कम है।

राज्य में 75 जिला पंचायतें, 822 क्षेत्र पंचायतें और 75,212 ग्राम पंचायतें हैं। इनमें 8,26,458 चुने हुए प्रतिनिधि सदस्य, विषय समिति के चेयरपर्सन और ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत तथा जिला पंचायत के अध्यक्ष के रूप में काम कर रहे हैं। आठ लाख से अधिक चुने हुए प्रतिनिधियों के वोकल होने के लिए उनके पास अधिक क्षमता होनी चाहिए, उनके पास अधिक अधिकार और संसाधन होने चाहिए।

संविधान का 73वां संशोधन क्षेत्र पंचायतों, जिला पंचायतों और ग्राम पंचायतों से आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजना बनाने की उम्मीद रखता है। खासकर संविधान की 11वीं अनुसूची में दिए गए 29 विषयों के बारे में। इन 29 विषयों में कृषि, गरीबी उन्मूलन, स्वास्थ्य, शिक्षा, समाज कल्याण और समुदाय की संपत्ति का रखरखाव भी शामिल हैं। इस समय आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय की योजनाओं के बजाए ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के स्तर पर विकास की योजनाएं बनाई जा रही हैं।

यह कार्य पंचायतों द्वारा अपने संसाधनों के जरिए पूरा किए जाने की उम्मीद की जाती है। क्योंकि अपने संसाधन जुटाने के कारण वे स्थानीय स्तर पर एक जिम्मेदार संस्थान के रूप में कार्य कर सकते हैं और स्थानीय स्तर पर अपनी बात रख सकते हैं। मौजूदा संदर्भ में हम यह देखते हैं कि जब संसद में पंचायत विधेयक पेश किया गया था तब सरकार के उद्देश्य और उसकी जिम्मेदारियां क्या थीं

तत्कालीन ग्रामीण विकास मंत्री जी. वेंकटस्वामी ने 1 दिसंबर 1992 को 73वां संविधान संशोधन विधेयक पेश करते हुए कहा था, “यह केंद्र के साथ-साथ राज्यों का भी कर्तव्य है कि वे ग्राम प्रधान की व्यवस्था स्थापित करें और उसे प्रभावी तथा स्वशासन संस्थान के रूप में विकसित करें। यह विधेयक प्रस्तुत करके सरकार महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज के सपने को साकार कर रही है।” तीन दशक पहले जो बात कही गई थी क्या वह हो सकी? क्या गांधीजी का सपना पूरा हुआ? संसद में विधेयक पेश करते समय राज्य की जो भूमिका बताई गई थी वह कहां है?

इस पृष्ठभूमि में राज्य में लोकल को वोकल बनाने की प्रक्रिया मजबूत करने के लिए यह सुझाव दिए जा रहे हैं-

पहला, ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत प्रभावी तरीके से काम करें, इसके लिए जरूरी है कि कृषि, उद्योग एवं निर्माण समिति, शिक्षा एवं जन स्वास्थ्य समिति, समता समिति, कार्य एवं विकास समिति आदि गठित की जाएं तथा उन्हें क्रियाशील किया जाए ताकि वे सदस्यों को शामिल करते हुए ग्राम पंचायत, क्षेत्र पंचायत और जिला पंचायत के विभिन्न कार्यों को पूरा कर सकें।

दूसरा, विकेंद्रीकृत लोकतंत्र के सबसे निचले पायदान को मजबूत बनाने के लिए वार्ड स्तर पर भी एग्जीक्यूटिव अधिकार दिए जाने चाहिए। उत्तर प्रदेश इस मामले में बिहार से सीख ले सकता है जहां इस तरह के प्रयोग पहले से चल रहे हैं। तीसरा, बजट, अकाउंट और ऑडिट का रखरखाव पंचायत ही करें। 15वें वित्त आयोग ने पंचायतों के खातों के लिए शर्तें निर्धारित की हैं। अगर उनके खाते मेंटेन नहीं हो रहे हैं तो वित्त आयोग पंचायतों को फंड जारी नहीं करेगा। राज्य वित्त आयोग को भी इस पर गौर करना चाहिए और अपने स्तर पर कदम उठाने चाहिए।

चौथा, चुने गए प्रतिनिधियों और अधिकारियों, दोनों को उचित प्रशिक्षण दिया जाना चाहिए। विभिन्न स्तरों पर प्रशिक्षण और क्षमता निर्माण की सुविधाएं विकसित की जानी चाहिए। उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड में भी जिला और क्षेत्रीय स्तर पर संस्थानों की चेन है। उनके पास प्रशिक्षण के लिए पर्याप्त हार्डवेयर और सॉफ्टवेयर होने चाहिए। प्रशिक्षित लोगों का उचित फॉलोअप किया जाना चाहिए जिससे यह पता चल सके कि प्रशिक्षण के दौरान उन्हें जो जानकारी और कौशल सिखाया गया उसका उन्होंने इस्तेमाल किया है या नहीं। अगर उन्होंने ऐसा नहीं किया है तो सुधारात्मक उपाय किए जाने चाहिए। प्रशिक्षक प्रशिक्षण संस्थानों में प्रशिक्षुओं को स्मार्टफोन की मदद से प्रशिक्षण देंगे। प्रशिक्षण देने के बाद प्रशिक्षक प्रशिक्षुओं का 6 महीने तक फॉलोअप करके यह देखेंगे कि उनमें किस स्तर की समझ विकसित हुई है। हर महीने प्रशिक्षक प्रशिक्षुओं से उन्हें दिए गए प्रशिक्षण के व्यावहारिक पहलुओं के बारे में पूछेंगे। उदाहरण के लिए ग्राम पंचायत की बैठक में वार्ड सदस्य को आमंत्रित किया गया या नहीं। अगर नहीं तो प्रशिक्षक उसे रिकॉर्ड करेगा और रिकॉर्ड किए हुए संदेश को कार्रवाई के लिए सरकार की तरफ से नियुक्त उचित अधिकारी को भेजेगा। प्रशिक्षण के दौरान बताए गए अन्य कार्यों के लिए भी इस तरह का तरीका अपनाया जा सकता है। जांच करने, मूल्यांकन और आवश्यक कार्रवाई के लिए पहले से तय व्यवस्था होनी चाहिए।

पांचवां, एसडीजी क्या है? पंचायत स्तर पर इसका कैसे स्थानीयकरण किया जा सकता है? वह कौन से क्षेत्र हैं जिन पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है? इन सब मुद्दों पर काम किया जाना चाहिए। यदि पंचायत में वैसे ही काम हो जैसी कि उम्मीद की जाती है तो एसडीजी के लक्ष्यों को हासिल करने में कोई समस्या नहीं आएगी। छठा, पंचायतें वित्तीय और तकनीकी रूप से इतनी सक्षम नहीं होती हैं कि वे जलापूर्ति, ग्रामीण सड़क, स्ट्रीट लाइट, स्वच्छता और प्राथमिक स्वास्थ्य जैसे मुख्य कार्यों को पूरा कर सकें।

दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग की भी राय थी कि पंचायत स्तर पर आंतरिक संसाधन जुटाने का कार्य इसलिए कमजोर है क्योंकि टैक्स उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं आता और वे रेवेन्यू संग्रह के कदम उठाने से बचते हैं। अतः जलापूर्ति सिस्टम, सॉलिड लिक्विड वेस्ट डिस्पोजल सिस्टम, सार्वजनिक पार्क, खेल के मैदान, बाजार परिसर, सार्वजनिक लाइब्रेरी, तालाब जैसे सामाजिक आर्थिक एसेट सृजित करने के लिए पर्याप्त पूंजी निवेश की जरूरत है। पंचायतें इन सेवाओं के लिए यूजर चार्ज तय कर सकती हैं अथवा अपने एसेट को लीज पर देकर आमदनी बढ़ा सकती हैं। क्योंकि फंड साझा किए बिना या अपने संसाधन के स्रोत (ओएसआर) के बिना स्थानीय स्तर पर जवाबदेही तय नहीं होगी। अंत में, लोकल को वोकल बनाने के लिए राज्य के गवर्नेंस में भागीदारी गवर्नेंस, प्लानिंग और विकास को अभिन्न हिस्सा बनाया जाना चाहिए।

(लेखक इंडियन इकोनॉमिक सर्विस के पूर्व अधिकारी हैं)

 

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