रूस- यूक्रेन युद्ध के चलते खाद्यान्न के अनचाहे भंडार से सोना बन गया है गेहूं

रूस और यूक्रेन युद्ध के चलते वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमतों में भारी बढ़ोतरी होने से भारत के लिए निर्यात का बड़ा मौका बन गया है। किसानों को भी इसके चलते अधिक कीमत मिल सकती है। अगर निर्यातक किसानों को एमएसपी से अधिक दाम देते हैं तो उसके चलते गेहूं की सरकारी खरीद घट सकती है। कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात, मध्य प्रदेश और राजस्थान के किसानों के पास निर्यातकों को एमएसपी से अधिक कीमत पर गेहूं बेचने का मौका होगा जबकि सरकारी खरीद के लिए पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश पर सरकार की निर्भरता बढ़ेगी। अंतरराष्ट्रीय बाजार में यह कीमत बढ़ोतरी एकदम सही समय पर आई है क्योंकि जल्द ही भारत में गेहूं की फसल बाजार में आने वाली है

रूस- यूक्रेन युद्ध के चलते खाद्यान्न के अनचाहे भंडार से सोना बन गया है गेहूं

रूस और यूक्रेन युद्ध ने इंटरनेशनल मार्केट में गेहूं की कीमतों को नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। गेहूं ही नहीं, ज्यादातर खाद्य पदार्थों की कीमतें अभी तक के सर्वोच्च स्तर पर पहुंच गई हैं। यह स्थिति हमारे लिए फायदेमंद है क्योंकि वैश्विक बाजार की कीमतों के मुकाबले भारतीय गेहूं बहुत प्रतिस्पर्धी स्थिति में है। यह स्थिति गेहूं उत्पादक किसानों को बेहतर कीमत दिला सकती है लेकिन इसके चलते गेहूं की सरकारी खरीद भी गिर सकती है। इस समय सेंट्रल पूल में गेहूं का स्टॉक पिछले तीन साल के निचले स्तर पर है। युद्ध के चलते रूस और यूक्रेन अभी गेहूं के निर्यात बाजार से बाहर हैं जबकि 2020-21 में गेहूं के कुल संभावित वैश्विक निर्यात बाजार में 590 लाख टन गेहूं निर्यात के साथ इन दोनों देशों की हिस्सेदारी 28.3 फीसदी रहने का अनुमान लगाया गया था। मौजूदा युद्ध की स्थिति और कीमतों के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने से भारत के लिए निर्यात का नया मौका पैदा हो गया है।

चार मार्च को शिकागो बोर्ड ऑफ ट्रेड (सीबॉट) पर गेहूं की कीमत 1348 सेंट प्रति बुशल पर पहुंच गई जो 495.30 डॉलर प्रति टन बैठती है। एक माह पहले यह कीमत 763.25 सेंट यानी 280.44 डॉलर प्रति टन थी जबकि साल भर पहले 649.75 प्रति बुशल थी जो 238.74 डॉलर प्रति टन बैठती है। एक बुशल 27.216 किलो का होता है। डॉलर का मौजूदा 76 रुपये प्रति डॉलर का रेट देखें तो वैश्विक बाजार में गेहूं की कीमत 37,643 रुपये प्रति टन यानी 3764 रुपये प्रति क्विटंल पर पहुंच गई है। इस समय अधिकांश गेहूं सौदों के लिए 400 डॉलर की बोली लगाई जा रही है जो 3040 रुपये प्रति क्विटंल बैठती है। वैसे कीमतें इससे कहीं अधिक हैं।

इंटरनेशनल ग्रेन काउंसिल के मुताबिक निर्यात के लिए 3 मार्च को अमेरिका के यूएस नंबर 2 हार्ड विंटर गेहूं की कीमत 505 डॉलर प्रति टन और यूएस नंबर टू सॉफ्ट विंटर गेहूं की कीमत 472 डॉलर प्रति टन पर रही। अर्जेंटीना के ग्रेड टू गेहूं की कीमत 418 डॉलर प्रति टन, फ्रांस के ग्रेड ए गेहूं की कीमत 427 डॉलर प्रति टन रही। यह कीमतें वैश्विक बाजार में गेहूं कीमतों को आंकने के लिए काफी हैं।

अब आते हैं देश में गेहूं की कीमतों पर। इसी माह के अंत में शुरू होने वाले आगामी रबी मार्केटिंग सीजन (2022-23) के लिए गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) 2015 रुपये प्रति क्विटंल है। यह कीमत करीब 263 डॉलर प्रति टन बैठती है। वहीं कांडला बंदरगाह पर इस समय गेहूं की डिलीवरी 24,500 रुपये प्रति टन पर हो गई जो 325 डॉलर प्रति टन बैठती है। निर्यात के लिए जरूरी फोबिंग, बैगिंग और पोर्ट चार्जेज के बाद फ्री ऑन बोर्ड (एफओबी) कीमत 350 डॉलर प्रति टन आती है। ऐसे में भारत को 350 से 375 डॉलर प्रति टन की कीमत पर कांडला पोर्ट पर डिलीवरी देने के सौदे आसानी से मिल सकते हैं। भारतीय मुद्रा में यह 26,000 रुपये से 26,600 रुपये प्रति टन बनती है। यह 20,500 रुपये प्रति टन के एमएसपी से काफी ज्यादा है।

यानी नई फसल आने के साथ बड़ी मात्रा में राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक और महाराष्ट्र का गेहूं निर्यात का रुख कर सकता है। अगर ट्रेडर एमएसपी से थोड़ी भी ज्यादा कीमत देता है तो उसे कांडला और मुंद्रा बंदरगाह पर निर्यात करने के लिए गेहूं पर मुनाफा कमाने का मौका है और वे उसे हाथ से जाने नहीं देना चाहेंगे। इस तरह भारत के पास बड़ी मात्रा में गेहूं निर्यात का मौका है। वहीं ऐसी स्थिति में सरकारी खरीद के लिए सरकार की पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश पर निर्भरता बढ़ जाएगी। जो इन राज्यों के किसानों के लिए भी बेहतर स्थिति रहेगी।

अमेरिकी कृषि विभाग (यूएसडीए) ने 9 फरवरी 2022 की रिपोर्ट में अनुमान लगाया था कि साल 2021-22 में गेहूं का वैश्विक निर्यात कारोबार 20.845 करोड़ टन रहेगा। इसमें से 590 लाख टन यानी 28.3 फीसदी हिस्सेदारी रूस और यूक्रेन की रहने का अनुमान लगाया गया था। लेकिन रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के चलते वहां से इतने निर्यात की संभावना नहीं रह गई है। इस कमी को पूरा करने का मौका भारत के पास है। युद्ध के चलते ब्लैक सी और नोवा सी स्थित बंदरगाहों के बंद होने के चलते यूक्रेन वैश्विक बाजार से कट गया है। वहीं रूस पर प्रतिबंधों के साथ ही वह अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेनदेन के सिस्टम स्विफ्ट से बाहर हो गया है।

जहां तक भारत से गेहूं के निर्यात की बात है तो पिछले तीन साल से इसमें बढ़ोतरी हो रही है। यहां से 2018-19 में 1.8 लाख टन, 2019-20 में 2.2 लाख टन और 2020-21 में 20.9 लाख टन गेहूं का निर्यात हुआ था। चालू वित्त वर्ष 2021-22 में अप्रैल से दिसंबर तक 50.04 लाख टन गेहूं का निर्यात हो चुका है और उम्मीद है कि वित्त वर्ष के अंत तक यह 2012-13 के 65.10 लाख टन के रिकॉर्ड को पार कर जाएगा। युद्ध लंबा खिंचा तो देश से गेहूं निर्यात 150 लाख टन तक जा सकता है।

सेंट्रल पूल में 1 मार्च, 2022 को गेहूं का स्टॉक 236.60 लाख टन था। पिछले साल इसी समय सेंट्रल पूल में गेहूं का स्टॉक 295.40 लाख टन था जबकि 2020 में यह 275.20 लाख टन और 2019 में 201.10 लाख टन था। यानी इस समय सेंट्रल पूल में गेहूं का स्टॉक तीन साल में सबसे कम है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं की कीमतों के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने और मौजूदा फसल के बारे में सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च (सीपीआर) के सीनियर फैलो हरीश दामोदरन का कहना है कि मौजूदा समय में गेहूं का स्टॉक बेहतर स्थिति में है, लेकिन इस साल की गेहूं की फसल के लिए अभी कुछ भी कहना जल्दबाजी होगी। इसके लिए तीन कारकों पर गौर करना होगा। पहला, आने वाले दिनों में अक्सर ओलावृष्टि की आशंका रहती है। दूसरा, अगले एक माह का तापमान फसल के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, अगर इसमें अचानक बढ़ोतरी होती है तो यह गेहूं की उत्पादकता पर प्रतिकूल असर डाल सकता है। तीसरा, इस साल गेहूं की बुआई के समय और उसके बाद भी उर्वरकों खासकर डीएपी की उपलब्धता का संकट रहा, यह परिस्थिति भी गेहूं की उत्पादकता पर असर डाल सकती है। इसलिए ऊंची वैश्विक कीमतें और भारत से गेहूं निर्यात का स्तर घरेलू बाजार और किसानों के लिए महत्वपूर्ण होगा।

भारतीय खाद्य निगम (एफसीआई) के स्टॉक से गेहूं का उठाव 2019-20 में केवल 272.2 लाख टन था, जो 2020-21 में बढ़कर 367.90 लाख टन हो गया। वहीं 2021-22 में लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टीपीडीएस) के तहत 510.10 लाख टन गेहूं का आवंटन किया गया है। इसमें से अप्रैल से दिसंबर 2021 के बीच 339.80 लाख टन गेहूं का उठाव हो चुका है और साल के अंत तक यह 430 लाख टन को पार कर सकता है। यह पिछले साल की सरकारी खरीद से अधिक रह सकता है।

गेहूं की सरकारी खरीद के आंकड़े देखें तो 2019-20 की फसल से सरकारी खरीद 389.90 लाख टन और 2020-21 की फसल से 433.40 लाख टन रही थी। लेकिन इस साल गेहूं की सरकारी खरीद इस स्तर तक पहुंचने की संभावना काफी कम है। इसी तरह, कोविड के चलते एफसीआई के स्टॉक से गेहूं का जो उठाव रहा था वह भी अब संभव नहीं लगता है।

अगर यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध के कारण मिल रही ऊंची कीमतों के चलते निर्यात बढ़ता है तो सरकारी खरीद पर इसका सीधा असर पड़ेगा। ऐसे में जिस तरह गेहूं को कम कीमतों के चलते मुफ्त बांटने का कदम उठाया गया था, वह शायद अब व्यावहारिक नहीं होगा क्योंकि अब गेहूं गैर जरूरी स्टॉक की बजाय एक महंगा उत्पाद बन गया है। कीमतें रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचने का समय भी किसानों के लिए बहुत सही है क्योंकि इसी समय उसकी फसल बाजार में आने वाली है। हालांकि अब यह देखना होगा कि क्या सरकार निर्यात की इस मौके का  पूरा फायदा निर्यातकों और किसानों को उठाने देना चाहती है या नहीं। कहीं कीमतों में तेजी को रोकने और घरेलू उपलब्धता बनाये रखने के नाम पर प्रतिबंधों को लेकर तो नहीं आ जाएगी। हालांकि सरकार के पास स्टॉक काफी रहेगा ऐसे में उसे किसी तरह के प्रतिबंध से बचना चाहिए क्योंकि  गेहूं के बड़े निर्यात का यह मौका भारत के लिए काफी लंबे समय बाद आया है। 

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