एथनॉल ब्लैंडिंग प्रोग्राम की कामयाबी के लिए ट्रांसपोर्टेशन से लेकर डिस्पेंसर तक नये तरीकों की जरूरत

पेट्रोल में एथनॉल ब्लैंडिंग प्रोग्राम में कामयाबी हासिल करने के लिए सरकार को इसके ट्रांसपोर्टेशन से लेकर ऑटोमोबाइल में इसकी फिलिंग तक कई नये तरीकों को अपनाने की जरूरत है। सरकार की नीति के मुताबिक 2025 तक पेट्रोल में 20 फीसदी एथनॉल की ब्लैंडिंग का लक्ष्य है। इसके लिए 1016 करोड़ लीटर एथनॉल की जरूरत पड़ेगी। उसे ट्रांसपोर्ट करने के लिए 3.5 लाख ट्रक टैंकरों की आवश्यकता होगी। एक अनुमान के मुताबिक इस ट्रांसपोर्टेशन के चलते ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन ही करीब 7.6 करोड़ टन होगा यानी ग्रीन फ्यूल के लिए इतने बड़े पैमाने पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का कारक भी साथ ही पैदा होगा

एथनॉल ब्लैंडिंग प्रोग्राम की कामयाबी के लिए ट्रांसपोर्टेशन से लेकर डिस्पेंसर तक नये तरीकों की जरूरत

पेट्रोल में एथनॉल ब्लैंडिंग प्रोग्राम में कामयाबी हासिल करने के लिए सरकार को इसके ट्रांसपोर्टेशन से लेकर ऑटोमोबाइल्स में इसकी फिलिंग तक कई नये तरीकों को अपनाने की जरूरत है। सरकार की नीति के मुताबिक 2025 तक पेट्रोल में 20 फीसदी एथनॉल की ब्लैंडिंग का लक्ष्य है। इसके लिए 1016 करोड़ लीटर एथनॉल की जरूरत पड़ेगी जिसे ट्रांसपोर्ट करने के लिए 3.5 लाख ट्रक टैंकरों की आवश्यकता होगी। एक अनुमान के मुताबिक इस ट्रांसपोर्टेशन के चलते ग्रीनहाउस गैसों (जीएचजी) का उत्सर्जन ही करीब 7.6 करोड़ टन होगा। यानी ग्रीन फ्यूल के लिए इतने बड़े पैमाने पर पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने का कारक भी साथ ही पैदा होगा। वहीं एथनॉल ब्लैंडिड पेट्रोल का इस्तेमाल करने वाले वाहनों के इंजन को नुकसान का अंदेशा भी जताया जाता रहा है। चीनी उद्योग और एक्सपर्ट्स का कहना है कि इन मसलों को हल करने के लिए जहां ट्रांसपोर्टेशन के लिए पाइपलाइन का इस्तेमाल करने की परियोजना बनानी होगी वहीं एथनॉल ब्लैंडिड पेट्रोल को वाहनों में भरने के पहले डिसपेंसर होज में फिल्टर लगाने की जरूरत है।

चालू सीजन ( दिसंबर, 2021- नवंबर, 2022) में 450 करोड़ लीटर एथनॉल का उपयोग होने का अनुमान है। वहीं नीति आयोग द्वारा बनाई गई एथनॉल पालिसी के मुताबिक 2025-26 में 20 फीसदी ब्लैंडिंग का लक्ष्य हासिल करने के लिए 1016 करोड़ लीटर एथनॉल की जरूरत पड़ेगी। जाहिर सी बात है कि इतनी बड़ी मात्रा में एथनॉल का ट्रांसपोर्टेशन एक बड़ी चुनौती है और अभी इसके लिए कोई बेहतर रणनीति सरकार नहीं बना सकी है। केवल तटीय इलाकों में शिप्स टैंकरों के जरिये इसकी ढुलाई हो रही है जबकि देश के बाकी हिस्सों में ट्रक टैंकरों का इस्तेमाल इसके परिवहन के लिए किया जा रहा है।

मध्य प्रदेश में चीनी उत्पादन करने वाली कंपनी मां रीवा शुगर प्राइवेट लिमिटेड के मैनेजिंग डायरेक्टर अखिलेश गोयल ने इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) और ब्राजील की एग्री कंसल्टेंसी डाटाग्रो द्वारा आयोजित एक कांफ्रेंस में दिये गये एक प्रजेंटेशन में बताया कि इतने बड़े स्तर पर एथनॉल के ट्रांसपोर्टेशन के लिए 29 किलोलीटर की क्षमता वाले 3.5 लाख टैंकरों की जरूरत पड़ेगी। जो करीब 7.6 करोड़ टन ग्रीएचजी उत्सर्जन का कारक बनेगा। उनका कहना है कि हमें एथनॉल की ढुलाई के लिए पाइपलाइन, रेल टैंक और तटीय इलाकों में फैरी व स्टीमर्स का उपयोग करना चाहिए।  

एथनॉल के ट्रांसपोर्टेशन के मुद्दे पर रूरल वॉयस के साथ बात करते हुए डाटाग्रो के प्रेजिडेंट, प्लिनिओ नस्तारी ने कहा कि मैं भारत द्वारा 2025 तक 20 फीसदी एथनॉल ब्लैंडिंग के लक्ष्य को हासिल करने को लेकर आश्वस्त हूं। जहां तक ट्रांसपोर्टेशन की बात है तो उसके लिए भारत को मल्टी प्रॉडक्ट पाइपलाइन का इस्तेमाल करना चाहिए। जिसमें पहले डीजल, फिर पेट्रोल (गैसोलीन) और उसके बाद एथनॉल का ट्रांसपोर्टेशन करने की नीति अपनाई जा सकती है। उन्होंने ब्राजील का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां सालाना 3500 करोड़ लीटर एथनॉल का उत्पादन होता है। ब्राजील में 14 रिफाइनरी और 344 प्लांट्स हैं जबकि 170 फ्यूएल डिपो और 41700 रिटेल स्टेशन हैं। हम पिछले 40 साल से मल्टी प्रॉडक्ट पाइपलाइंस का इस्तेमाल एथनॉल के ट्रांसपोर्टेशन के लिए कर रहे हैं। प्राइमरी से सेकेंडरी लेवल तक पाइलपाइन और तटीय इलाकों में शिप का इस्तेमाल करते हैं। केवल रिटेल आउलेट्स पर इसके परिवहन के लिए टैंकरों का इस्तेमाल किया जाता है। भारत को यही रणनीति अपनाने की सलाह उन्होंने दी।

एथनॉल को लेकर एक महत्वपूर्ण बात करते हुए उन्होंने बताया कि पेट्रोल (गैसोलीन) एक बहुत ही अनस्टेबल उत्पाद है। इसके स्टॉक वाले स्टोरेज टैंकों और पाइपलाइन में गम इकट्ठा हो जाता है जो अक्सर भंडार किये जाने वाले टैंकों की सतह और दीवारों पर चिपक जाता है। वहीं एथनॉल एक सॉल्वेंट है और जिसके चलते यह गम एथनॉल में मिक्स हो जाता है। यह एथनॉल ब्लैंडिंड पेट्रोल के साथ गाड़ियों में जाकर इंजन को नुकसान पहुंचा सकता है। इसके लिए उन्होंने कहा कि वाहन में ईंधन भरने वाले डिस्पेंसर में फिल्टर लगाने से यह समस्या खत्म हो जाती है क्योंकि फिल्टरिंग के चलते गम वाहन में नहीं जा पाता है। इसलिए भारत में इसका उपयोग करना चाहिए। उन्होंने साफ किया कि पेट्रोल में 20 फीसदी तक एथनॉल की ब्लैंडिंग से वाहन के इंजन को कोई नुकसान नहीं है। इसलिए जरूरी एहतिहात बरतने के लिए डिस्पेंसर होज में फिल्टर लगाने की व्यवस्था भारत को लागू करनी चाहिए। ब्राजील में ई-26 के बारे में उन्होंने कहा कि वहां की ऑटो कंपनियों के मुताबिक 26 फीसदी एथनॉल ब्लैंडिंग वाले पेट्रोल का इस्तेमाल कारों में किया जा सकता है। 

भारत में 2013-14 में एथनॉल ब्लैंडिंग का कार्यक्रम शुरू करने वाले साल में केवल 30 करोड़ लीटर एथनॉल का उत्पादन हुआ था और पेट्रोल में इसकी ब्लैंडिंग का स्तर 1.53 फीसदी था। लेकिन चालू साल में एथनॉल उत्पादन 450 करोड़ लीटर पर पहुंच गया जिसमें  370 करोड़ लीटर गन्ने के रस और मोलेसेज आधारित डिस्टलरीज में बना है। केवल 80 करोड़ लीटर एथनॉल ग्रेन आधारित डिस्टलरीज में उत्पादित हुआ है। सरकार ने पिछले दिनों बताया था कि देश में एथनॉल की पेट्रोल में 10 फीसदी ब्लैंडिंग का स्तर हासिल कर लिया गया है।

देश में एथनॉल के दो सबसे बड़े उत्पादक राज्य उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र हैं लेकिन सरकार इसकी पेट्रोल में ब्लैंडिंग का लक्ष्य पूरे देश में हासिल करना चाहती है। इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का कहना है कि यह नीति बहुत व्यावहारिक नहीं है। बेहतर होगा कि सरकार बड़े उत्पादक राज्यों में एथनॉल की ब्लैंडिंग को पहले 15 फीसदी और उसके बाद 20 फीसदी तक ले जाए। इससे एथनॉल के ट्रांसपोर्टेशन का खर्च तो कम होगा ही इंफ्रास्ट्रक्चर का खर्च भी बचेगा। इसके लिए सरकार इन राज्यों में अधिक एथनॉल इस्तेमाल करने वाले उपभोक्ताओं को कीमत का इंसेंटिव देकर उपयोग को बढ़ावा दे सकती है। पेट्रोल और अधिक एथनॉल ब्लैंडिंग वाले पेट्रोल के लिए डुअल प्राइसिंग व्यवस्था लागू की जा सकती है। इसके लिए सब्सिडी की दरकार नहीं है बल्कि एक्साइज में कटौती की जा सकती है जिसकी हिस्सेदारी केंद्र और राज्य दोनों बराबर वहन कर सकते हैं। इस तरह के तरीके सरकार को 2025 तक 20 फीसदी एथनॉल ब्लैंडिंग का लक्ष्य हासिल करने में मददगार साबित हो सकते हैं। 

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