जलवायु परिवर्तन से ज्यादा मानवीय गतिविधियों के कारण गिरता है भूजल स्तर: इक्रीसैट स्टडी

झीलों के आसपास मानवीय गतिविधियों से भूजल स्तर जितना गिरता है, वह जलवायु परिवर्तन के असर से भी ज्यादा है। इक्रीसैट के एक अध्ययन में यह दावा किया गया है। हैदराबाद की हिमायत सागर झील के एक मॉडल अध्ययन के बाद इक्रीसैट ने बताया है कि इसके कैचमेंट एरिया में पानी के अधिक इस्तेमाल वाली फसलों की खेती से रेनवाटर हार्वेस्टिंग के प्रयास धूमिल हो रहे हैं

जलवायु परिवर्तन से ज्यादा मानवीय गतिविधियों के कारण गिरता है भूजल स्तर: इक्रीसैट स्टडी

झीलों के आसपास मानवीय गतिविधियों से भूजल स्तर जितना गिरता है, वह जलवायु परिवर्तन के असर से भी ज्यादा है। इक्रीसैट के एक अध्ययन में यह दावा किया गया है। हैदराबाद की हिमायत सागर झील के एक मॉडल अध्ययन के बाद इक्रीसैट ने बताया है कि इसके कैचमेंट एरिया में पानी के अधिक इस्तेमाल वाली फसलों की खेती से रेनवाटर हार्वेस्टिंग के प्रयास धूमिल हो रहे हैं।

स्टडी के अनुसार हाइड्रोलॉजिकल स्ट्रक्चर से जो पानी जमा किया गया उसका 50% भूजल स्तर बढ़ाने के काम आया। लेकिन भूजल का इस्तेमाल करने वाली फसलों की खेती का रकबा बढ़ने से हिमायत सागर के कैचमेंट एरिया में भूजल में गिरावट आई है।

इक्रीसैट डेवलपमेंट सेंटर (आईडीसी) में हाइड्रोलॉजिस्ट डॉ. राजेश नूने ने कहा, "कैचमेंट एरिया में हर साल जो भूजल रिचार्ज होता है, वह भारी बारिश वाले वर्षों के दौरान सिंचाई की जरूरतों को पूरा करने में सक्षम है। सूखा वाले वर्षों में इससे 50% और सामान्य वर्षों में 30% जरूरत पूरी हो सकती है।" स्टडी रिपोर्ट से यह भी पता चलता है कि जल संसाधनों के बेहतर गवर्नेंस की जरूरत है। खासकर सेमी-एरिड इलाकों में यह बड़ी चुनौती है।

अध्ययन के अनुसार औसत बारिश बढ़ने के बावजूद जल प्रवाह में गिरावट की आशंका है, खासकर मई और नवंबर में बारिश में अंतर को देखते हुए। कैचमेंट एरिया में होने वाले बदलावों का भविष्य में जलवायु परिवर्तन की तुलना में अधिक असर होगा।

आईडीसी के प्रमुख डॉ श्रीनाथ दीक्षित ने कहा, "जल प्रवाह पर जलवायु परिवर्तन और लैंड यूज़ बदलने के साथ भूजल रिचार्ज के असर को समझने से अभी और भविष्य में पानी की जरूरतों के लिए लैंडस्केप मैनेजमेंट को बेहतर तरीके से समझने में मदद मिलेगी।"

आईडीसी के शोधकर्ताओं ने जलवायु, लैंडयूज़, वाटरसेड स्ट्रक्चर और भूजल स्तर के बारे में तेलंगाना सरकार के विभिन्न संगठनों की तरफ से जुटाए गए ऐतिहासिक आंकड़ों का अध्ययन किया। यह आंकड़े खरीफ और रबी सीजन के दौरान विभिन्न फसलों के लिए भूजल के इस्तेमाल से संबंधित थे। 

इन आंकड़ों का मॉडिफाइड सॉइल एंड वॉटर एसेसमेंट टूल (SWAT) नाम के हाइड्रोलॉजिकल मॉडल के साथ विश्लेषण किया गया। इक्रीसैट की स्टडी में हिमायत सागर के कैचमेंट इलाके में जल प्रवाह और भूजल स्टोरेज पर जलवायु तथा कैचमेंट में भविष्य में होने वाले बदलावों के असर का भी विश्लेषण किया गया।

आमतौर पर तेलंगाना में अगस्त के बजाय सितंबर में सबसे अधिक बारिश होती है। डॉ. नूने ने कहा, “विश्लेषणात्मक फ्रेमवर्क से नीति निर्माताओं को धान, गन्ना, मक्का जैसी पानी के ज्यादा इस्तेमाल वाली फसलों की उचित मॉनिटरिंग में मदद मिलेगी। वे किसानों को पानी के उचित इस्तेमाल के साथ फसलों के विविधीकरण पर भी सुझाव दे सकेंगे।”

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